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________________ कई एक (१) उत्क्षिप्त - प्रथमतः समारभ्यमाण- पहले शुरू किये गये, (२) पादात्त - पादबद्ध - छन्द के चार भाग रूप पादों में बँधे हुए, (३) मंदाय - बीच-बीच में मूर्च्छना आदि के प्रयोग द्वारा धीरे-धीरे गाये जाते, तथा (४) रोचितावसान - यथोचित लक्षणयुक्त होने से अवसान पर्यन्त समुचित निर्वाहयुक्त - ये चार प्रकार के गेय-संगीतमय रचनाएँ गाते हैं । कई एक ( १ ) अंचित, (२) द्रुत, (३) आरभट, तथा (४) भसोल नामक चार प्रकार का नृत्य करते हैं । फ्र कई (१) दार्शन्तिक, (२) प्रातिश्रुतिक, (३) सामान्यतोविनिपातिक एवं (४) लोकमध्यमावसानिक चार प्रकार का अभिनय करते हैं। कई बत्तीस प्रकार की नाट्य-विधि दिखाते हैं। कई उत्पानत - निपात- आकाश में ऊँचा उछलना-नीचे गिरना आदि विविध नृत्यक्रिया में पहले अपने आपको संकुचित करना - सिकोड़ना, फिर प्रसृत करना - फैलाना, तथा भ्रान्त - संभ्रान्त - जिसमें प्रदर्शित अद्भुत चरित्र देखकर प्रेक्षकवृन्द भ्रमयुक्त हो जायें, आश्चर्ययुक्त हो जायें, वैसी अभिनयशून्य, गात्रविक्षेपमात्र नाट्यविधि दिखाते हैं । कई ताण्डव - प्रोद्धत-प्रबल नृत्य करते हैं, कई लास्य- सुकोमल नृत्य करते हैं । कई एक अपने को स्थूल प्रदर्शित करते हैं, कई एक बूत्कार ( बैठते हुए पुतों द्वारा भूमि आदि को पीटना ), कई एक वल्गन करते हैं- पहलवानों की ज्यों परस्पर बाहुओं द्वारा भिड़ जाते हैं, कई सिंहनाद करते हैं, कई क्रमशः तीनों करते हैं। कई घोड़ों की ज्यों हिनहिनाते हैं, कई हाथियों की ज्यों गुलगुलाते हैं - मन्द - मन्द चिंघाड़ते हैं, कई रथों की ज्यों घनघनाते हैं, कई घोड़ों की ज्यों हिनहिनाहट, हाथियों की ज्यों गुलगुलाहट तथा रथों की ज्यों घनघनाहट - क्रमशः तीनों करते हैं । कई एक आगे से मुख पर चपत लगाते हैं, कई एक पीछे से मुख पर चपत लगाते हैं, कई एक अखाड़े में पहलवान की ज्यों पैंतरे बदलते हैं। कई एक पैर से जमीन पर पैर पटकते हैं, कई हाथ से जमीन पर थाप मारते हैं, कई जोर-जोर से आवाज लगाते हैं। कई इन करतबों को दो-दो के रूप में, तीन-तीन के रूप में मिलाकर प्रदर्शित करते हैं। कई हुंकार करते हैं, कई पूत्कार करते हैं, कई थक्कार करते हैं - 'थक् - थक्' शब्द उच्चारित करते हैं। कई नीचे गिरते हैं, कई ऊँचे उछलते हैं, कई तिरछे गिरते हैं। कई अपने को ज्वालारूप में प्रदर्शित करते हैं, कई मन्द अंगारों का रूप धारण करते हैं, कई दीप्त अंगारों का रूप धारण करते हैं। कई गर्जन करते हैं, कई बिजली की ज्यों चमकते हैं, कई वर्षा के रूप में परिणत होते हैं । कई वातूल की ज्यों चक्कर लगाते हैं, कई अत्यन्त प्रमोदपूर्वक कहकहाहट करते हैं, कई 'दुहु-दुहु' की ध्वनि करते हैं। कई लटकते होठ, मुँह बाये, आँखें फाड़े-ऐसे विकृत - भयानक भूत-प्रेतादि जैसे रूप विकुर्वित कर बेतहाशा नाचते हैं। कई चारों ओर कभी धीरे-धीरे, कभी जोर-जोर से दौड़ लगाते हैं। जैसा विजयदेव का वर्णन है, वैसा ही यहाँ कथन करना चाहिए । 154. After preparing the relevant material for the anointing ceremony Achyutendra (master of twelfth heaven ) comes with his 10,000 co-chiefs, 33 advisors, four governors, three cabinets, seven armies, seven army chiefs and 40,000 body-guards. They were carrying 1,008 golden pots, | पंचम वक्षस्कार (437) Jain Education International *******************************மிது For Private & Personal Use Only Fifth Chapter www.jainelibrary.org
SR No.002911
Book TitleAgam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni, Shreechand Surana
PublisherPadma Prakashan
Publication Year2006
Total Pages684
LanguageHindi, English
ClassificationBook_Devnagari, Book_English, Agam, Canon, Conduct, & agam_jambudwipapragnapti
File Size21 MB
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