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अप्पे आ पीन्ति, एवं बुक्कारेन्ति, अप्फोडेन्ति वग्गन्ति, सीहणायं णदन्ति, अप्पेगइया सव्वाइं कन्ति अप्पेगइआ हयहेसिअं एवं हत्थिगुलुगुलाइअं, रहघणघणाइअं, अप्पेगइआ तिण्णिवि, अप्पेगइआ उच्छलन्त, अप्पेगइआ पच्छोलन्ति, अप्पेगइआ तिवई छिंदन्ति, पायदद्दरयं करेन्ति, भूमिचवेडे दलयन्ति, अप्पेगइआ महया सद्देणं रावेंति एवं संजोगा विभासिअव्वा, अप्पेगइआ हक्कारेन्ति, एवं पुक्कारेन्ति, थक्कारेन्ति, ओवयंति, उप्पयंति, परिवयंति, जलन्ति, तवंति, पयवंति, गज्जंति, विज्जुआयंति, वासिंति, अप्पेगइआ देवुक्कलिअं करेंति एवं देवकहकहगं करेंति, अप्पेगइआ दुहुदुहुगं करेंति, अप्पेगइआ विकिअभूयाई रुवाई विउव्बित्ता पणच्वंति एवमाइ विभासेज्जा जहा विजयस्स जाव सव्वओ समन्ता आहावेंति परिधावेंतित्ति ।
१५४. अभिषेक योग्य सब सामग्री तैयार हो जाने पर देवेन्द्र अच्युत अपने दस हजार सामानिक देवों, तेतीस त्रायस्त्रिंश देवों, चार लोकपालों, तीन परिषदों, सात सेनाओं, सात सेनापति - देवों तथा चालीस हजार अंगरक्षक देवों के साथ स्वाभाविक एवं विकुर्वित उत्तम कमलों पर रखे हुए, सुगन्धित, उत्तम जल से परिपूर्ण, चन्दन से चर्चित, गले में मोती बाँधे हुए, कमलों एवं उत्पलों से ढँके हुए, सुकोमल हथेलियों पर उठाये हुए एक हजार आठ सोने के कलशों यावत् चाँदी के कलशों, मणियों के कलशों, सोने एवं चाँदी के मिश्रित कलशों, एक हजार आठ मिट्टी के कलशों के सब प्रकार के जलों, सब प्रकार की मृत्तिकाओं, सब प्रकार के कषाय- कसैले पदार्थों, (सब प्रकार के पुष्पों, सब प्रकार के सुगन्धित पदार्थों, सब प्रकार की मालाओं) सब प्रकार की औषधियों एवं सफेद सरसों द्वारा सब प्रकार : की ऋद्धि-वैभव के साथ तुमुल वाद्यध्वनिपूर्वक भगवान तीर्थंकर का अभिषेक करता है।
अच्युतेन्द्र द्वारा अभिषेक किये जाते समय अत्यन्त हर्षित एवं परितुष्ट अन्य इन्द्र आदि देव छत्र, ! चँवर, धूपपान, पुष्प, सुगन्धित पदार्थ, (मालाएँ, चूर्ण- सुगन्धित द्रव्यों का बुरादा ) वज्र, त्रिशूल हाथ में लिए, अंजलि बाँधे खड़े रहते हैं । एतत्सम्बद्ध वर्णन जीवाभिगमसूत्र में आये विजयदेव के अभिषेक के प्रकरण के सदृश है । कतिपय देव पण्डक वन के मार्गों में, जो स्थान-स्थान से लाये हुए चन्दन आदि वस्तुओं के अपने बीच यत्र-तत्र ढेर लगे होने से बाजार की ज्यों प्रतीत होते हैं, जल का छिड़काव करते हैं, उनकी सफाई करते हैं, उन्हें लीपते हैं, ठीक करते हैं। यों उसे पवित्र - उत्तम एवं स्वच्छ बनाते हैं, सुगन्धित धूममय बनाते हैं ।
कई एक वहाँ चाँदी बरसाते हैं। कई स्वर्ण, रत्न, हीरे, गहने, पत्ते, फूल, फल, बीज, मालाएँ, गन्ध-सुगन्धित द्रव्य, हिंगुल आदि रंग (वस्त्र) तथा चूर्ण - सौरभमय पदार्थों का बुरादा बरसाते हैं। कई एक मांगलिक प्रतीक के रूप में अन्य देवों को रजत भेंट करते हैं। (कई एक स्वर्ण, कई एक रत्न, कई एक हीरे, कई एक आभूषण, कई एक पत्र, कई एक पुष्प, कई एक फल, कई एक बीज, कई एक मालाएँ, कई एक गन्ध, कई एक वर्ण तथा ) कई एक चूर्ण भेंट करते हैं ।
कई एक (१) तत - वीणा आदि कई एक (२) वितत - ढोल आदि कई एक (३) घन- ताल आदि, 5 तथा कई एक (४) शुषिर - बाँसुरी आदि चार प्रकार के वाद्य बजाते हैं।
जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र
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Jambudveep Prajnapti Sutra
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