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5 चतुःशाल भवन एवं सिंहासन था, वहाँ लाती हैं। वहाँ लाकर भगवान तीर्थंकर तथा उनकी माता को सिंहासन पर बिठाती हैं। उन्हें सिंहासन पर बिठाकर अपने आभियोगिक देवों को बुलाती हैं । बुलाकर 5 उन्हें कहती हैं- 'देवानुप्रियो ! चुल्ल हिमवान् वर्षधर पर्वत से गोशीर्ष चन्दन काष्ठ लाओ।'
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फिर मध्य रुचकनिवासिनी वे चार महत्तरा दिक्कुमारिकाएँ भगवान तीर्थंकर को अपनी हथेलियों के
5 संपुट द्वारा तथा भगवान की माता को भुजाओं द्वारा उठाती हैं। उठाकर उन्हें भगवान तीर्थंकर के 5 जन्म - भवन में ले आती हैं। भगवान की माता को वे शय्या पर सुला देती हैं। शय्या पर सुलाकर 卐 5 भगवान तीर्थंकर को माता की बगल में सुला देती हैं। फिर वे मंगल गीतों का आगान - परिगान 5 करती हैं।
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*5******************************தமிழி
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मध्य रुचक पर निवास करने वाली उन महत्तरा दिक्कुमारिकाओं द्वारा यह आदेश दिये जाने पर वे आभियोगिक देव हर्षित एवं परितुष्ट होते हैं, विनयपूर्वक उनका आदेश स्वीकार करते हैं । वे शीघ्र चुल्ल हिमवान् वर्षधर पर्वत से ताजा गोशीर्ष चन्दन ले आते हैं ।
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147. [2] Then the chief Dik-kumaris of central Ruchak area came to the Tirthankar and his mother. They pick up the Tirthankar with their palms and his mother in their arms. Then, they come to the banana plantations in the south, the mansion and the place where the seat was 5 built. They seat the Tirthankar and his mother on the throne. Then, they massage the body of the Tirthankar with the oil prepared by boiling hundreds of herbs and the oil prepared with a thousand herbs. Then, they, after mixing fragrant material in wheat flour, prepare a paste and remove the slipperiness of the oil on the body with this paste. Thereafer, 卐 they pick up the Tirthankar with their palms and his mother in their arms, and bring them to the house built by banana plantation in the east and after bringing them in the mansion seat the Tirthankar and his f mother on the throne.
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जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र
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तब वे मध्य रुचकनिवासिनी दिक्कुमारिकाएँ शर या बाण जैसा तीक्ष्ण अग्नि- उत्पादक काष्ट-विशेष तैयार करती हैं। उसके साथ अरणि काष्ठ को संयोजित करती हैं। दोनों को परस्पर रगड़ती हैं, अग्नि उत्पन्न करती हैं। अग्नि को उद्दीप्त करती हैं। उद्दीप्त कर उसमें गोशीर्ष चन्दन के टुकड़े डालती हैं। उससे अग्नि प्रज्वलित करती हैं । अग्नि को प्रज्वलित कर उसमें समिधा - काष्ठ - हवनोपयोगी ईंधन डालती हैं, हवन करती हैं, भूतिकर्म करती हैं- जिस प्रयोग द्वारा ईंधन भस्मरूप में परिणत हो जाये, वैसा करती हैं। फ्र वैसा कर वे डाकिनी, शाकिनी आदि से, दृष्टिदोष से - नजर आदि से रक्षा हेतु भगवान तीर्थंकर तथा उनकी माता के भस्म की पोटलियाँ बाँधती हैं। फिर नानाविध मणि-रत्नांकित दो पाषाण - गोलक लेकर 卐 वे भगवान तीर्थंकर के कर्णमूल में उन्हें परस्पर ताड़ित कर 'टिट्टी' जैसी ध्वनि उत्पन्न करती हुई बजाती 5 हैं, जिससे बाललीलावश अन्यत्र आसक्त भगवान तीर्थंकर उन द्वारा बोले गये आशीर्वचन सुनने में दत्तावधान हो सकें। वे मंगल वचन बोलती हैं- 'भगवन् ! आप पर्वत के सदृश दीर्घायु हों ।'
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Jambudveep Prajnapti Sutra
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