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________________ ת ת ת ת ת ת ת ת जागा । तं जहा-गन्धोदएणं १, पुष्फोदएणं २ सुद्धोदएणं ३, मज्जावित्ता सव्वालंकारविभूसिअं करेंति २ त्ता, । भगवं तित्थयरं करयलपुडेणं तित्थयरमायरं च बाहाहिं गिण्हन्ति २ ता जेणेव उत्तरिल्ले कयलीहरए जेणेव । चउसालए जेणेव सीहासणे तेणेव उवागच्छन्ति २ ता भगवं तित्थयरं तित्थयरमायरं च सीहासणे ; णिसीआविंति २ ता आभिओगे देवे सद्दाविन्ति २ ता एवं वयासी-खिप्पामेव भो देवाणुप्पिया ! । चुल्लहिमवन्ताओ वासहरपव्वयाओ गोसीसचंदणकट्ठाई साहरह।। ___ तए णं ते आभिओगा देवा ताहिं रुअगमज्झवत्थव्वाहिं चउहिं दिसाकुमारी-महत्तरिआहिं एवं वुत्ता समाणा हट्टतुट्ठा जाव विणएणं वयणं पडिच्छन्ति २ त्ता खिप्पामेव चुल्लहिमवन्ताओ वासहरपव्वयाओ सरसाइं गोसीसचन्दणकट्ठाई साहरन्ति । ___तए णं ताओ मज्झिमरुअगवत्थव्वाओ चत्तारि दिसाकुमारीमहत्तरिआओ सरगं करेन्ति २ त्ता अरणिं # घडेति, अरणिं घडित्ता सरएणं अरणिं महिंति २ ता अग्गिं पाति २ त्ता अग्गिं संधुक्खंति २ ता म गोसीसचन्दणकट्टे पक्खिवन्ति २ त्ता अग्गिं उज्जालंति २ त्ता समिहाकट्ठाइं पक्खिविन्ति २ ता अग्गिहोमं # करेंति २ त्ता भूतिकम्मं करेंति २ त्ता रक्खापोट्टलिअं बंधन्ति, बन्धेत्ता णाणामणिरयण-भत्तिचित्ते दुविहे पाहाणवट्टगे गहाय भगवओ तित्थयरस्स कण्णमूलंमि टिटिआविन्ति भवउ भयवं पव्वयाउए २। ____ तए णं ताओ रुअगमज्झवत्थव्याओ चत्तारि दिसाकुमारीमहत्तरिआओ भयवं तित्थयरं करयलपुडेणं तित्थयरमायरं च बाहाहिं गिण्हन्ति, गिण्हित्ता जेणेव भगवओ तित्थयरस्स जम्मणभवणे तेणेव उवागच्छन्ति २ त्ता तित्थयरमायरं सयणिज्जंसि णिसीआविंति, णिसीआवित्ता भयवं तित्थयरं माउए पासे ठवेंति, ठवित्ता के आगायमाणीओ परिगायमाणीओ चिट्ठन्तीति। १४७. [ २ ] फिर वे मध्यरुचकवासिनी महत्तरा दिक्कुमारिकाएँ भगवान तीर्थंकर तथा उनकी माता के पास आती हैं। तीर्थंकर को अपनी हथेलियों के संपुट द्वारा उठाती हैं और तीर्थंकर की माता 2 को भुजाओं द्वारा उठाती हैं। ऐसा कर दक्षिणदिग्वर्ती कदलीगृह में, जहाँ चतुःशाल भवन एवं सिंहासन बनाए गये थे, वहाँ आती हैं। भगवान तीर्थंकर एवं उनकी माता को सिंहासन पर बिठाती हैं। सिंहासन पर बिठाकर उनके शरीर पर शतपाक (सौ प्रकार की जड़ी-बूटियों से पकाया गया हो) एवं सहस्रपाक (हजार प्रकार की जड़ी-बूटियों से पकाया गया) तैल द्वारा अभ्यंगन-मालिश करती हैं। फिर सुगन्धित गन्धाटक से-गेहूँ आदि के आटे के साथ कतिपय पदार्थ मिलाकर तैयार किये गये उबटन या पीठी मलकर तैल की चिकनाई दूर करती हैं। वैसा कर वे भगवान तीर्थंकर को हथेलियों के संपुट द्वारा तथा है उनकी माता को भुजाओं द्वारा उठाती हैं, जहाँ पूर्वदिशावर्ती कदलीगृह, चतुःशाल भवन तथा सिंहासन थे, वहाँ लाती हैं, वहाँ लाकर भगवान तीर्थंकर एवं उनकी माता को सिंहासन पर बिठाती हैं। म सिंहासन पर बिठाकर (१) गन्धोदक-केसर आदि सुगन्धित पदार्थ मिले जल, (२) पुष्पोदक-पुष्प मिले जल तथा (३) शुद्ध जल केवल जल-यों तीन प्रकार के जल द्वारा उनको स्नान कराती हैं। स्नान 5 कराकर उन्हें सब प्रकार के अलंकारों से विभूषित करती हैं। तत्पश्चात् भगवान तीर्थंकर को हथेलियों । के संपुट द्वारा और उनकी माता को भुजाओं द्वारा उठाती हैं। उठाकर, जहाँ उत्तरदिशावर्ती कदलीगृह, । ת ת ת ת ॐॐॐ5555555555555555555555555555555555555555555555 ת ת ת ת ת ת ת ת ת ת hhhhhhhhhhh पंचम वक्षस्कार (405) Fifth Chapter )) ) )) क)) )))) ))) )) ) ))) ) ) )) )) ) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002911
Book TitleAgam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni, Shreechand Surana
PublisherPadma Prakashan
Publication Year2006
Total Pages684
LanguageHindi, English
ClassificationBook_Devnagari, Book_English, Agam, Canon, Conduct, & agam_jambudwipapragnapti
File Size21 MB
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