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卐 [प्र.] कहि णं भन्ते ! पण्डगवणे रत्तकंबलसिला णामं सिला पण्णत्ता ? [ [उ. ] गोयमा ! मन्दरचूलिआए उत्तरेणं, पंडगवणउत्तरचरिमंते एत्थ णं पंडगवणे रत्तकंबलसिला णाम
सिला पण्णत्ता। पाईण-पडीणायया, उदीण-दाहिणवित्थिया, सव्वतवणिज्जमई अच्छा जाव मझदेसभाए 5 सीहासणं, तत्थ णं बहूहिं भवणवइ. जाव देवहिं देवीहि अ एरावयगा तित्थयरा अहिसिच्चन्ति।
१३६. [प्र. ] भगवन् ! पण्डक वन में कितनी अभिषेक शिलाएँ हैं ?
[उ.] गौतम ! वहाँ चार अभिषेक शिलाएँ बतलाई गई हैं-(१) पाण्डुशिला, (२) पाण्डुकम्बलशिला, (३) रक्तशिला, तथा (४) रक्तकम्बलशिला।
[प्र. ] भगवन् ! पण्डक वन में पाण्डुशिला नामक शिला कहाँ पर है ?
[उ. ] गौतम ! मन्दर पर्वत की चूलिका के पूर्व में पण्डक वन के पूर्वी किनारे पर पाण्डुशिला नामक शिला है। वह उत्तर-दक्षिण लम्बी तथा पूर्व-पश्चिम चौड़ी है। उसका आकार अर्ध-चन्द्र जैसा
है। वह ५०० योजन लम्बी, २५० योजन चौड़ी तथा ४ योजन मोटी है। वह सर्वथा स्वर्णमय है। में पद्मवरवेदिका तथा वनखण्ड द्वारा चारों ओर से संपरिवृत है। विस्तृत वर्णन पूर्वानुरूप है।
उस पाण्डुशिला के चारों ओर चारों दिशाओं में तीन-तीन सीढ़ियाँ बनी हैं। तोरण पर्यन्त उनका + वर्णन पूर्ववत् है। उस पाण्डुशिला पर बहुत समतल एवं सुन्दर भूमिभाग है। उस पर देव आश्रय लेते हैं, ऊ यावत् क्रीड़ा करते हैं। उस बहुत समतल, रमणीय भूमिभाग के बीच में उत्तर तथा दक्षिण में दो + सिंहासन हैं। वे ५०० धनुष लम्बे-चौड़े और २५० धनुष ऊँचे हैं। विजय नामक वस्त्र के अतिरिक्त * सिंहासन पर्यन्त उसका वर्णन पूर्ववत् है। ___वहाँ जो उत्तर दिशावर्ती सिंहासन है, वहाँ बहुत से भवनपति, वाणव्यन्तर, ज्योतिष्क एवं वैमानिक देव-देवियाँ कच्छ आदि विजयों में उत्पन्न तीर्थंकरों का अभिषेक करते हैं।
वहाँ जो दक्षिण दिशावर्ती सिंहासन है, वहाँ बहुत से भवनपति, (वाणव्यन्तर, ज्योतिष्क) एवं वैमानिक देव-देवियाँ वत्स आदि विजयों में उत्पन्न तीर्थंकरों का अभिषेक करते हैं।
[प्र. ] भगवन् ! पण्डक वन में पाण्डुकम्बलशिला नामक शिला कहाँ है?
[उ.] गौतम ! मन्दर पर्वत की चूलिका के दक्षिण में, पण्डक वन के दक्षिणी किनारे पर पाण्डुकम्बलशिला नामक शिला है। वह पूर्व-पश्चिम लम्बी तथा उत्तर-दक्षिण चौड़ी है। उसका प्रमाण, विस्तार पूर्ववत् है। उसके बहुत समतल एवं रमणीय भूमिभाग के बीचोंबीच एक विशाल सिंहासन है। उसका वर्णन पूर्ववत् है। वहाँ भवनपति आदि चारों जाति के देव-देवियाँ भरतक्षेत्रोत्पन्न तीर्थंकरों का अभिषेक करते हैं।
[प्र. ] भगवन् ! पण्डक वन में रक्तशिला नामक शिला कहाँ पर है? __[उ. ] गौतम ! मन्दर पर्वत की चूलिका के पश्चिम में, पण्डक वन के पश्चिमी छोर पर रक्तशिला ॐ नामक शिला है। वह उत्तर-दक्षिण लम्बी है, पूर्व-पश्चिम चौड़ी है। उसका प्रमाण, विस्तार पूर्ववत् है। के वह सर्वथा तपनीय स्वर्णमय है, स्वच्छ है। उसके उत्तर-दक्षिण दो सिंहासन हैं। उनमें जो दक्षिणी 5
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जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र
(378)
Jambudveep Prajnapti Sutra
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