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दसहिं रायवरसहस्सेहिं सद्धिं संपरिवुडे विणीअं रायहाणिं मज्झंमज्झेणं णिग्गच्छइ २ त्ता मज्झदेसे सुहंसुहेणं विहरइ २ त्ता जेणेव अट्ठावए पव्वए तेणेव उवागच्छइ उवागच्छित्ता अट्ठावयं पव्वयं सणिअं २ दुरूहइ 5 दुरूहित्ता मेघघणसण्णिकासं देवसण्णिवायं पुढविसिलापट्टयं पडिलेहेइ पडिलेहित्ता संलेहणा - झूसणाझूसिए भत्त - पाण- पडिआइक्खए पाओवगए कालं अणवकंखमाणे २ विहरइ ।
तए णं से भरहे केवली सत्तत्तरिं पुव्वसयसहस्साइं कुमारवासमझे वसित्ता, एगं वाससहस्सं 5 मंडलिय - राय - मज्झे वसित्ता, छ पुव्वसयसहस्साई बाससहस्सूणगाई महारायमज्झे वसित्ता, तेसीइ
5 पुव्वसयसहस्साइं अगारवासमज्झे वसित्ता, एगं पुव्वसयसहस्सं देसूणगं केवलि - परियायं पाउणित्ता तमेव 5
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बहुपडिपुण्णं सामन्न- परियायं पाउणित्ता चउरासीइ पुव्वसयसहस्साइं सव्वाउअं पाउणत्ता मासिएणं भत्ते
5 अपाणएणं सवणेणं णक्खत्तेणं जोगमुवागएणं खीणे वेअणिज्जे आउए णामे गोए कालगए वीइक्कंते 5 समुज्जाए छिण्णजाइ - जरा - मरण - बंधणे सिद्धे बुद्धे मुत्ते परिणिबुडे अंतगडे सव्वदुक्खप्पहीणे ।
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८७. [ २ ] तब केवली सर्वज्ञ भरत ने स्वयं ही अपने आभूषण, अलंकार उतार दिये। स्वयं ही
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पंचमुष्टिक लोच किया। वे शीशमहल से बाहर निकले। बाहर निकलकर अन्तःपुर के बीच से होते हुए 5 राजभवन से बाहर आये। अपने द्वारा प्रतिबोधित दस हजार राजाओं से संपरिवृत केवली भरत विनीता फ्र 卐 राजधानी के बीच से होते हुए बाहर चले गये । मध्यदेश में - कोशल देश में सुखपूर्वक विहार करते हुए वे जहाँ अष्टापद पर्वत था, वहाँ आये। वहाँ आकर धीरे-धीरे अष्टापद पर्वत पर चढ़े। पर्वत पर चढ़कर 5 सघन मेघ के समान श्याम तथा देव-सन्निपात - जहाँ देवों का आवागमन रहता था, ऐसे पृथ्वीशिलापट्टक 卐 का प्रतिलेखन किया । प्रतिलेखन कर उन्होंने वहाँ संलेखना स्वीकार की, खान-पान का परित्याग किया, 5 पादोपगत-कटी वृक्ष की शाखा की ज्यों जिसमें देह को सर्वथा निष्प्रकम्प रखा जाये, वैसा संथारा फ अंगीकार किया । जीवन और मरण की आकांक्षा न करते हुए वे आत्माराधना में अभिरत रहे ।
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87. [2] Then omniscient Bharat removed his ornaments and symbols himself. He plucked his hair in five attempts and then came out of the glass palace. Passing through the harem, he came out of the palace. He had imparted his knowledge to ten thousand kings and then alongwith these kings he came out through Vinita city. He, moving ahead, came to जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र
(252)
Jambudveep Prajnapti Sutra
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केवली भरत सतहत्तर लाख पूर्व तक कुमारावस्था में रहे, एक हजार वर्ष तक मांडलिक राजा के 5 रूप में रहे, एक हजार वर्ष कम छह लाख पूर्व तक महाराज के रूप में - चक्रवर्ती सम्राट् के रूप में रहे।
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वे तियासी लाख पूर्व तक गृहस्थवास में रहे । अन्तर्मुहूर्त्त कम एक लाख पूर्व तक वे केवलि - पर्याय में 5 रहे। एक लाख पूर्व पर्यन्त उन्होंने श्रामण्य पर्याय- श्रमण- जीवन का, संयमी जीवन का पालन किया। 5 उन्होंने चौरासी लाख पूर्व का समग्र आयुष्य भोगा । उन्होंने एक महीने के चौविहार - अनशन द्वारा वेदनीय, आयुष्य, नाम तथा गोत्र - अघाति कर्मों के क्षीण हो जाने पर श्रवण नक्षत्र में जब चन्द्र का योग था, देह त्याग किया। जन्म, जरा तथा मृत्यु के बन्धन को उन्होंने तोड़ डाला। वे सिद्ध, बुद्ध, मुक्त, परिनिर्वृत, अन्तकृत्-संसार में आवागमन के नाशक तथा सब प्रकार के दुःखों के प्रहाता गये।
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