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))))))5555555555555555 Thereafter, thirty two thousand subordinate main rulers who were 卐 following the king, came to the coronation hall, entered it, went around +
the coronation seat and came near the king from the stairs set up in the north. They greeted the king with folded hands and then took their seats at a distance with a desire to listen to him after saluting him with folded hands in a humble posture. Thereafter, the army chief and the chanteer came there. Their description is the same as mentioned earlier. The only 4 difference is that they went to the coronation seat from the path for stairs set up in the south up to that they came to the king.
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महाराज्याभिषेक CORONATION CEREMONY OF KING EMPEROR
८४. [ ४ ] तए णं से भरहे राया आभिओगे देवे सद्दावेइ २ ता एवं वयासी-खिप्पामेव भो देवाणुप्पिआ ! ममं महत्थं महग्धं महरिहं महारायाअभिसेअं उवट्ठवेह।
तएणं ते आभिओगिआ देवा भरहेणं रण्णा एवं वुत्ता समाणा हद्वतुट्ठचित्ता जाव उत्तरपुरथिमं दिसीभागं : अवक्कमंति. अवक्कमित्ता वेउविअसमग्याएणं समोहणंति, एवं जहा विजयस्स तहा इत्थंपि जाव। ___पंडगवणे एगओ मिलायंति एगओ मिलाइत्ता जेणेव दाहिणद्धभरहे वासे जेणेव विणीआ रायहाणी तेणेव उवागच्छंति २ ता विणीअं रायहाणिं अणुप्पयाहिणीकरेमाणा २ जेणेव अभिसेअमंडवे जेणेव भरहे, राया तेणेव उवागच्छंति २ ता तं महत्थं महग्धं महरिहं महारायाभिसेअं उवट्ठवेति। तए णं तं भरहं रायाणं बत्तीसं रायसहस्सा सोभणंसि तिहि-करण-दिवस-णक्खत्त-मुहत्तंसि उत्तरपोट्ठवयाविजयंसि तेहिं साभाविएहि अ उत्तरवेउविएहि अ वरकमलपइट्ठाणेहिं सुरभिवर-वारिपडिपुण्णेहिं जाव महया महया
रायाभिसेएणं अभिसिंचंति, अभिसेओ जहा विजयस्स। अभिसिंचित्ता पत्तेअं २ जाव अंजलिं कटु ताहिं # इट्ठाहिं जहा पविसंतस्स भणिआ विहराहित्ति कटु जयजयसदं पउंजंति।
तए णं तं भरहं रायाणं सेणावइरयणे पुरोहियरयणे तिण्णि अ सट्टा सूअसया अट्ठारस सेणिप्पसेणीओ __ अण्णे अ बहवे जाव सत्थवाहप्पभिइओ एवं चेव अभिसिंचंति वरकमलपइट्ठाणेहिं तहेव अभिथुणंति अ सोलस
देवसहस्सा एवं चेव णवरं पम्हलसुकुमालाए जाव मउडं पिणद्वेति। तयणंतरं गंधेहिं च णं दद्दरमलयसुगंधिएहिं ॐ गंधेहिं गायाई अन्भुक्छेति दिव्वं सुमणोदामं पिणछेति, किं बहुणा ? गंथिम-वेढिम विभूसि करेंति।
८४. [ ४ ] तत्पश्चात् राजा भरत ने आभियोगिक देवों का आह्वान किया। आह्वान कर कहाॐ देवानुप्रियो ! मेरे लिए महार्थ-जिसमें मणि, स्वर्ण, रत्न आदि का उपयोग हो, महाघ-जिसमें बहुत बड़ा
पूजा-सत्कार हो, महार्ह-जिसके अन्तर्गत गाजों-बाजों सहित बड़ा उत्सव मनाया जाए, ऐसे महाराज्याभिषेक का प्रबन्ध करो।
राजा भरत द्वारा यों कहे जाने पर वे आभियोगिक देव हर्षित एवं परितुष्ट हुए। वे उत्तर-पूर्व दिशा ॐ भाग में गये। वहाँ जाकर वैक्रिय समुद्घात द्वारा आत्म-प्रदेशों को बाहर निकाला। जम्बूद्वीप के 卐 विजयद्वार के अधिष्ठाता विजयदेव के प्रकरण में जो वर्णन आया है, वह यहाँ भी समझ लें।
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| जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र
(242)
Jambudveep Prajnapti Sutra
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