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वे देव पंडकवन में एकत्र हुए मिले। मिलकर जहाँ दक्षिणार्ध भरत क्षेत्र था, जहाँ विनीता राजधानी थी, वहाँ आये। आकर विनीता राजधानी की प्रदक्षिणा की, जहाँ अभिषेक-मण्डप था, जहाँ राजा भरत था, वहाँ आये। आकर महार्थ, महार्घ तथा महार्ह महाराज्याभिषेक के लिए अपेक्षित समस्त सामग्री राजा के समक्ष उपस्थित की। बत्तीस हजार राजाओं ने उत्तम, श्रेष्ठ तिथि, करण, दिवस, नक्षत्र एवं मुहूर्त्त मेंउत्तरा भाद्रपदा नक्षत्र तथा विजय नामक मुहूर्त्त में स्वाभाविक तथा वैक्रियलब्धि द्वारा निष्पादित, श्रेष्ठ कमलों पर प्रतिष्ठापति, सुरभित, उत्तम जल से परिपूर्ण एक हजार आठ कलशों से राजा भरत का बड़े आनन्दोत्सव के साथ अभिषेक किया। अभिषेक का परिपूर्ण वर्णन जीवाभिगमसूत्रगत विजयदेव के अभिषेक के सदृश है। उन राजाओं में से प्रत्येक ने इष्ट-प्रिय वाणी द्वारा राजा का अभिनन्दन, अभिस्तवन किया। वे बोले - राजन् ! आप सदा जयशील हों। आपका कल्याण हो । यावत् विनीता राजधानी में प्रवेश के वर्णन अनुरूप यहाँ समझें। आप सांसारिक सुख भोगें, यों कहकर उन्होंने जयघोष किया।
तत्पश्चात् सेनापतिरत्न, तीन सौ साठ स्वस्ति वाचकों, अठारह श्रेणि- प्रश्रेणि जनों तथा और बहुत से माण्डलिक राजाओं, सार्थवाहों ने राजा भरत का उत्तम कमल-पत्रों पर प्रतिष्ठापित, सुरभित उत्तम जल से परिपूर्ण कलशों से अभिषेक किया । यावत् हृदय को आह्लादित करने वाली वाणी द्वारा अभिनन्दन किया, अभिस्तवन किया । पश्चात् सोलह हजार देवों ने यावत् सुगन्धित पदार्थों से संस्कारित, अति सुकुमार रोओं वाले तौलिये से राजा का शरीर पोंछा । गोशीर्ष चन्दन का लेप किया। ! दिव्य वस्त्र धारण कराये । दिव्य- वस्त्र पहनाकर राजा के गले में अठारह लड़ का हार पहनाया । कुण्डल पहनाये। चूड़ामणि धारण करवाया। विभिन्न रत्नों से जड़ा हुआ मुकुट पहनाया। तत्पश्चात् उन देवों ने दर्दर तथा मलय चन्दन की सुगन्ध से युक्त, केसर, कपूर, कस्तूरी आदि के सारभूत, इत्र राजा पर ! छिड़के। चार प्रकार की मालाओं से विभूषित किया।
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84. [4] The king then called the abhiyogik celestial beings and said, 'O the blessed! You arrange a grand coronation ceremony for me wherein a festival at a grand scale be celebrated in which precious stones, gold, jewels and the like be used, worshipping be done and the musical instruments be played.
The abhiyogik celestial beings felt pleased at these orders. They went in the north-east direction. They took out the space-points of their soul with fluid process. Here the description may be understood similar to that mentioned in case of Vijay deva, the guarding celestial being of Vijay gate.
Those celestial beings collected in Panduk forest. They then came to Vinita city located in the southern half of Bharat area. They presented before the king all the material needed for coronation ceremony which included that for worship. On the auspicious day at the auspicious time when it was the period of Uttara-Bhadrapada nakshatra and Vijay muhurt, the thirty two thousand kings performed the coronation of the king with one thousand eight pitchers full of fragrant water of best तृतीय वक्षस्कार
Third Chapter
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