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८४. [ ३ ] तए णं से भरहे राया आभिओगाणं देवाणं अंतिए एअमट्ठे सोच्चा णिसम्म हट्ठतुट्ठ जाव पोसहसालाओ पडिणिक्खमइ २ त्ता कोडुंबिअपुरिसे सद्दावेइ २ त्ता एवं वयासी - खिप्पामेव भो देवाणुप्पिआ ! ५ अभिसेक्कं हत्थरयणं पडिकप्पेह २ त्ता हयगय सण्णाहेत्ता एअमाणत्तिअं पच्चष्पिणह जाव पच्चपिण्णंति । ५ तणं भरहे राया मज्जणघरं अणुपविसइ जाव अंजणगिरिकूडसण्णिभं गयवई णरवई आरूढे । तए णं ५ तस्स भरहस्स रण्णो आभिसेक्कं हत्थिरयणं दुरूढस्स समाणस्स इमे अट्ठट्ठमंगलगा जो चेव गमो विणीअं पविसमाणस्स सो चेव णिक्खममाणस्स वि जाव अपडिबुज्झमाणे विणीअं रायहाणिं मज्झंमज्झेणं णिग्गच्छइ २ त्ता जेणेव विणीआए रायहाणीए उत्तरपुरत्थिमे दिसीभाए अभिसेअमंडवे तेणेव उवागच्छइ २ त्ता
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5 अभिसे अमंडवदुआरे आभिसेक्कं हत्थिरयणं ठावेइ २ त्ता आभिसेक्काओ हत्थिरयणाओ पच्चोरुहइ २ त्ता ५ इत्थीरयणेणं बत्तीसाए उडुकल्लाणिआसहस्सेहिं बत्तीसाए जणवयकल्लाणिआसहस्सेहिं बत्तीसाए ५ बत्तीसइबद्धेहिं णाडगसहस्सेहिं सद्धिं संपरिवुडे अभिसे अमंडवं अणुपविसइ २ त्ता जेणेव अभिसेयपेढे तेणेव
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5 उवागच्छइ २ त्ता अभिसेअपेढं अणुप्पदाहिणीकरेमाणे २ पुरत्थिमिल्लेणं तिसोवाणपडिरूवएणं दुरूह २ त्ता ५ जेणेव सीहासणे तेणेव उवागच्छइ २ त्ता पुरत्थाभिमुहे सण्णिसण्णेत्ति ।
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अभिषेक-मण्डप में प्रवेश ENTRY IN CORONATION HALL
तए णं तस्स भरहस्स रण्णो बत्तीसं रायसहस्सा जेणेव अभिसेअमण्डवे तेणेव उवागच्छंति २ त्ता अभिसे अमंडवं अणुपविसंति २ त्ता अभिसेअपेढं अणुप्पयाहिणीकरेमाणा २ उत्तरिल्लं तिसोवाणपडिरूवएणं 5 जेणेव भरहे राया तेणेव उवागच्छंति २ त्ता करयल जाव अंजलिं कट्टु भरहं रायाणं जएणं विजएणं वद्धावेंति
२ त्ता भरहस्स रणो णच्चासण्णे णाइदूरे सुस्सूसमाणा पज्जुवासंति । तए णं तस्स भरहस्स रण्णो सेणावइरयणे जाव सत्थवाहप्पभिईओ ते ऽवि तह चेव णवरं दाहिणिल्लेणं तिसोवाणपडिरूवएण जाव पज्जुवासंति।
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८४. [ ३ ] राजा भरत उन आभियोगिक देवों से यह सुनकर हर्षित एवं परितुष्ट हुआ, पौषधशाला फ से बाहर निकला। बाहर निकलकर अपने कौटुम्बिक पुरुषों को बुलाया। बुलाकर यों कहा- '
- 'देवानुप्रियो !
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शीघ्र ही हस्तिरत्न को तैयार करो । हस्तिरत्न को तैयार कर घोड़े, हाथी, रथ तथा श्रेष्ठ योद्धाओं से- ५ पदातियों से परिगठित चातुरंगिणी सेना को सजाओ । ऐसा कर मुझे अवगत कराओ।' कौटुम्बिक पुरुषों ५ ने वैसा किया एवं राजा को उसकी सूचना दी।
फिर राजा भरत स्नानघर में प्रविष्ट हुआ। स्नानादि से निवृत्त होकर अंजनगिरि के शिखर के समान उन्नत गजराज पर आरूढ़ हुआ । राजा भरत के आभिषेक्य हस्तिरत्न पर आरूढ़ हो जाने पर आठ मंगल प्रतीक, जिनका वर्णन विनीता राजधानी में प्रवेश करने के अवसर पर आया है, राजा के आगे-आगे रवाना किये गये । राजा के विनीता राजधानी से अभिनिष्क्रमण का वर्णन उसके विनीता में प्रवेश के वर्णन के समान है। राजा भरत विनीता राजधानी के बीच से निकला । निकलकर जहाँ विनीता राजधानी के उत्तर-पूर्व दिशा भाग में - ईशानकोण में अभिषेक - मण्डप था, वहाँ आया। अभिषेक - मण्डप के द्वार पर अभिषेक्य हस्तिरत्न को ठहराया। ठहराकर हस्तिरत्न से नीचे उतरा। नीचे उतरकर स्त्रीरत्न- परम सुन्दरी सुभद्रा, बत्तीस हजार ऋतु - कल्याणिकाओं, बत्तीस हजार 5 जनपद - कल्याणिकाओं, बत्तीस-बत्तीस के समूह में बनी, बत्तीस हजार नाटक - मंडलियों से घिरा हुआ 5 जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र Jambudveep Prajnapti Sutra 4
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