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________________ 卐 देवों द्वारा अभिषेक मण्डप रचना CONSTRUCTION OF CORONATION HALL BY DEVAS ८४. [२] तए णं से भरहे राया जेणेव पोसहसाला तेणेव उवागच्छइ उवागच्छित्ता जाव 卐 卐 5 पडिजागरमाणे विहरइ । तए णं से भरहे राया अट्ठमभत्तंसि परिणममाणंसि आभिओगिए देवे सहावेइ सद्दावित्ता एवं बयासी - खिप्पामेव भो देवाणुप्पि ! विणीआए रायहाणीए उत्तरपुरत्थिमे दिसीभाए एगं महं अभिसे अमंडवं विउव्वेह विउब्वित्ता मम एअमाणत्तिअं पच्चष्पिणह, तए णं ते आभिओगा देवा भरहेणं फ्र சு रण्णा एवं वृत्ता समाणा हट्ठतुट्ठा जाव एवं सामित्ति आणाए विणएणं वयणं पडिसुणेंति, पडिसुणित्ता विणीआए रायहाणीए उत्तरपुरत्थिमं दिसीभागं अवक्कमंति अवक्कमित्ता वेउब्विअसमुग्धाएणं समोहणंति २ त्ता संखिज्जाई जोअणाई दंड णिसिरंति, तं जहा - वइराणं जाव रिट्ठाणं अहाबायरे पुग्गले परिसाडेंति परिसाडित्ता अहासुहुमे पुग्गले परिआदिअंति परिआदित्ता दुच्छंपि वेउब्विय- समुग्धायेणं जाव समोहणंति २ त्ता बहुसमरमणिज्जं भूमिभागं विउब्वंति से जहाणामए आलिंगपुक्खरेइ वा । तस्स णं बहुसमरमणिज्जस्त भूमिभागस्स बहुमज्झदेसभाए एत्थ णं महं एवं अभिसे अमण्डवं विउव्वंति 5 க 5 5 बहुमज्झदेसभाए एत्थ णं महं एगं सीहासणं विउव्वंति । तस्स णं सीहासणस्स अयमेवारूवे वण्णावासे पण्णत्ते अणेगखंभ - सयसणिविट्ट जाव गंधवट्टिभूअं पेच्छाघरमंडववण्णगोत्ति । तस्स णं अभिसेअ - मंडवस्स 5 बहुमज्झदेसभाए एत्थ णं महं एगं अभिसेअपेढं विउव्वंति अच्छं सण्हं, तस्स णं अभिसे अपेढस्स तिदिसिं 5 तओ तिसोवाणपडिरूवए विउव्वंति, तेसि णं तिसोवाणपडिरूवगाणं अयमेवरूवे वण्णावासे पण्णत्ते । तस्स णं फ अभिसे अपेढस्स बहुसमरमणिज्जे भूमिभागे पण्णत्ते । तस्स णं बहुसमरमणिज्जस्त भूमिभागस्स 卐 जाव दामवण्णगं समत्तंति । तए णं ते देवा अभिसे अमंडवं विउव्वंति विउब्वित्ता जेणेव भरहे राया पच्चप्पिणंति । 卐 卐 ८४. [२] तत्पश्चात् राजा भरत पौषधशाला में आया। तेले की तपस्या स्वीकार की। की । तेले की तपस्या पूर्ण हो जाने पर आभियोगिक देवों का आह्वान कहा - " हा - 'देवानुप्रियो ! विनीता राजधानी के उत्तरर-पूर्व दिशा भाग में का कथन सुनकर वे आभियोगिक देव मन में हर्षित एवं परितुष्ट हुए । “स्वामी ! जो आज्ञा ।" यों कहकर उन्होंने राजा भरत का आदेश विनयपूर्वक स्वीकार किया । स्वीकार कर विनीता राजधानी के सावधानीपूर्वक तेले की तपस्या 卐 फ्र किया । आह्वान कर इस प्रकार 5 ईशानकोण में विशाल अभिषेक-मण्डप की रचना करो। वैसा कर मुझे अवगत कराओ।' राजा भरत 5 卐 फ्र प्रदेशों को बाहर निकालकर संख्यात योजन लम्बा दण्डरूप में परिणत किया। उनसे गृह्यमाण हीरे, फ्र फ वैडूर्य, यावत् रिष्ट आदि रत्नों के बादर-स्थूल, असार पुद्गलों को छोड़ दिया। उन्हें छोड़कर सारभूत सूक्ष्म पुद्गलों को ग्रहण किया। उन्हें ग्रहण कर पुनः वैक्रिय समुद्घात द्वारा अपने आत्म- प्रदेशों को 卐 फ फ की। उसके ठीक बीच में एक विशाल अभिषेक-मण्डप की रचना की। फ्र 5 ईशानकोण में गये । वहाँ जाकर वैक्रिय समुद्घात द्वारा अपने आत्म-प्रदेशों को बाहर निकाला। आत्म- फ्र बाहर निकाला। बाहर निकालकर मृदंग के ऊपरी भाग की ज्यों समतल, सुन्दर भूमिभाग की विकुर्वणा वह अभिषेक - मण्डप सैकड़ों खंभों पर टिका था । यावत् वह विविध चित्रों से युक्त था । काले अगर, जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र फफफफफफफ 卐 (238) Jain Education International 5 卐 5 उत्तम कुन्दरुक, लोबान एवं धूप की गमगमाती महक से वहाँ का वातावरण उत्कृष्ट सुरभिमय बना था । 卐 यहाँ प्रेक्षागृह का वर्णन अन्य आगमों से समझ लेना चाहिए। अभिषेक-मण्डप के ठीक बीच में एक 5 卐 Jambudveep Prajnapti Sutra For Private & Personal Use Only 卐 ததததத**************************தமிழி www.jainelibrary.org
SR No.002911
Book TitleAgam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni, Shreechand Surana
PublisherPadma Prakashan
Publication Year2006
Total Pages684
LanguageHindi, English
ClassificationBook_Devnagari, Book_English, Agam, Canon, Conduct, & agam_jambudwipapragnapti
File Size21 MB
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