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________________ 五听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听FFE 斯特劳斯牙牙牙牙牙 PAUL 555555555555555555558 步步步步步步步步步步步步步步步步步步步步步步步统等等, ८२. [२] (१) नैसर्प निधि, (२) पाण्डुक निधि, (३) पिंगलक निधि, (४) सर्वरत्न निधि, (५) महापद्म निधि, (६) काल निधि, (७) महाकाल निधि, (८) माणवक निधि, तथा (९) शंख निधि। वे निधियाँ अपने-अपने नाम के देवों से अधिष्ठित थीं। (१) नैसर्प निधि-ग्राम, आकर, नगर, पट्टन, द्रोणमुख, मडम्ब, स्कन्धावार, आपण तथा भवन-इनके स्थापन-समुत्पादन में नैसर्प महानिधि का उपयोग होता है। (२) पाण्डक निधि-दीनार, नारिकेल आदि गिने जाने योग्य; धान्य आदि मापे जाने वाले; चीनी, गुड़ आदि तोले जाने वाले, कलम जाति के उत्तम चावल आदि धान्यों के बीजों को उत्पन्न करने में समर्थ होती है। (३) पिंगलक निधि-पुरुषों, नारियों, घोड़ों तथा हाथियों के आभूषणों को उत्पन्न करने की विशेषता लिए होती है। (४) सर्वरत्न निधि-चक्रवर्ती के चौदह उत्तम रत्नों को उत्पन्न करती है। उनमें-(१) चक्ररत्न, + (२) दण्डरल, (३) असिरत्न, (४) छत्ररत्न, (५) चर्मरत्न, (६) मणिरत्न, तथा (७) काकणीरत्न ये सात एकेन्द्रिय होते हैं। (१) सेनापतिरत्न, (२) गाथापतिरत्न, (३) वर्धकिरल, (४) पुरोहितरत्न, 9 (५) अश्वरत्न, (६) हस्तिरत्न, तथा (७) स्त्रीरत्न-ये सात पंचेन्द्रिय होते हैं। (५) महापद्म निधि-सभी प्रकार के वस्त्रों को उत्पन्न करती है। वस्त्रों के रँगने, धोने आदि समग्र सज्जा के निष्पादन की वह विशेषता लिए होती है। (६) काल निधि-समस्त ज्योतिषशास्त्र के ज्ञान, तीर्थंकर-वंश, चक्रवर्ती-वंश तथा बलदेववासुदेव-वंश-इन तीनों में जो शुभ-अशुभ घटित हुआ, घटित होगा, घटित हो रहा है, उन सबके 5 ज्ञान, सौ प्रकार के शिल्पों के ज्ञान, उत्तम, मध्यम तथा अधम कर्मों के ज्ञान को उत्पन्न करने की शक्ति लिए होती है। (७) महाकाल निधि-विविध प्रकार के लोह, रजत, स्वर्ण, मणि, मोती, स्फटिक तथा प्रवाल-मूंगे __ आदि के आकरों-खानों को उत्पन्न करने की विशेषतायुक्त होती है। (८) माणवक निधि-योद्धाओं, आवरणों-शरीर को आवृत करने वाले, सुरक्षित रखने वाले कवच ॐ आदि के प्रहरणों-शस्त्रों के, सब प्रकार की युद्ध-नीति के-चक्रव्यूह, शकटव्यूह, गरुड़व्यूह आदि की 5 रचना से सम्बद्ध विधिक्रम के तथा साम, दाम, दण्ड एवं भेदमूलक राजनीति के उद्भव की विशेषता लिए होती है। (९) शंख निधि-सब प्रकार की नृत्य-विधि, नाटक-विधि-अभिनय, अंग-संचालन, मुद्रा-प्रदर्शन ॐ आदि की, धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष-इन चार पुरुषार्थों के प्रतिपादक काव्यों की अथवा संस्कृत, अपभ्रंश एवं संकीर्ण-मिली-जुली भाषाओं में निबद्ध काव्यों की अथवा गेय-गाये जा सकने योग्य, गीतिबद्ध, चौर्ण-निपात एवं अव्यय बहुल रचनायुक्त काव्यों की उत्पत्ति की विशेषता लिए होती है, सब प्रकार के वाद्यों को उत्पन्न करने की विशेषता इसमें होती है। 乐乐55555555555 55 $555 तृतीय वक्षस्कार (221) Third Chapter 35555555555555555555555555555558 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002911
Book TitleAgam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni, Shreechand Surana
PublisherPadma Prakashan
Publication Year2006
Total Pages684
LanguageHindi, English
ClassificationBook_Devnagari, Book_English, Agam, Canon, Conduct, & agam_jambudwipapragnapti
File Size21 MB
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