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5 मंगल - पायच्छित्ता उल्लपडसाडगा ओचूलगणिअच्छा अग्गाई वराई रयणाई गहाय पंजलिउडा पायवडिआ 5
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भरहं रायाणं सरणं उवेह, पणिवइअ - वच्छला खलु उत्तमपुरिसा, णत्थि भे भरहस्त रण्णो अंतिआओ
5 भयमिति कट्टु । एवं वदित्ता जामेव दिसिं पाउब्भूआ तामेव दिसिं पडिगया।
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ते आवाsचिलाया मेहमुहेहिं णागकुमारेहिं देवेहिं एवं बुत्ता समाणा उडाए उट्ठेति उट्ठित्ता व्हाया
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5 कयबलिकम्मा कयकोउअ - मंगलपायच्छित्ता उल्लपडसाडगा ओचूलगणिअच्छा अग्गाई बराई रयणाई गहाय 5 जेणेव भरहे राया तेणेव उवागच्छंति २ त्ता करयलपरिग्गहिअं जाव मत्थए अंजलिं कट्टु रायं जएणं
विजएणं वद्धाविंति वद्धावित्ता अग्गाई वराई रयणाई उवणेंति उवणित्ता एवं वयासीवसुहर गुणहर जयहर, हिरि - सिरि-धी- कित्ति - धारकणरिंद। लक्खणसहस्सधारक, रायमिदं णे
चिरं धारे॥१ ॥
हयवइ गयवइ णरवइ, णवणिहिवइ बत्तीस - जणवयसहस्सराय, सामी
भरहवासपढमवई । चिरं जीव ॥२॥
ईसर, हिअईसर महिलिआसहस्साणं । चोइसरयणीसर जसंसी ॥३॥
5 जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र
पढम - परीसर देवसयसाहसीसर,
सागरगिरिमेरागं, उत्तरवाईणमभिजिअं
ता अम्हे देवाणुप्पि अस्स विस
अहो देवापिणं इड्डी जुई जसे बले वीरिए पुरिसक्कारपरक्कमे दिव्वा देवजुई दिडे देवाणुभावे द्धे पत्ते अभिसमण्णा । तं दिट्ठा णं देवाणुप्पिआणं इड्डी एवं चेव जाव अभिसमण्णागए। तं खामेमु णं देवाप्पि ! खमंतु णं देवाणुष्पिआ ! खंतुमरहतु णं देवाणुप्पिआ ! णाइ भुज्जो भुज्जो एवं करणाएत्ति कट्टु पंजलिउडा पायवडिआ भरहं रायं सरणं उविंति ।
तणं से भरहे राया सुसेणं सेणावई सद्दावेइ सद्दावित्ता त्ता एवं वयासी- गच्छाहि णं भो देवाणुष्पिआ ! दोच्चं पि सिंधूए महाणईए पच्चत्थिमं णिक्खुडं ससिंधुसागरगिरिमेरागं समविसमणिक्खुडाणि अ ओअवेहि ओवत्ता अग्गाई बराइं रयणाई पडिच्छाहि पडिच्छित्ता मम एअमाणत्तिअं खिप्पामेव पच्चष्पिणाहि ।
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तुमए । परिवसामो ॥४॥
जहा दाहिणिल्लस्स ओयवणं तहा सव्वं भाणिअव्वं जाव पच्चणुभवमाणा विहरंति ।
७७. [ २ ] जब उन देवताओं ने मेघमुख नागकुमार देवों को इस प्रकार कहा तो वे डर गये, त्रस्त, व्यथित एवं उद्विग्न हो गये, उन्होंने बादलों की घटाएँ समेट लीं। समेटकर, जहाँ आपात किरात थे, वहाँ
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तए णं से भरहे राया तेसिं आवाडचिलायाणं अग्गाई वराई रयणाइं पडिच्छइ, पडिच्छित्ता ते फ्र आवाडचिलाए एवं वयासी - गच्छह णं भो ! तुब्भे ममं बाहुच्छायापरिग्गहिया णिब्भया णिरुव्विग्गा सुहंसुहेणं परिवसह, णत्थि भे कत्तो वि भयमत्थित्ति कट्टु सक्कारेइ सम्माणेइ, सक्कारेत्ता सम्माणेत्ता पडिविसज्जेइ ।
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Jambudveep Prajnapti Sutra
आये और बोले- देवानुप्रियो ! राजा भरत महाऋद्धिशाली यावत् महान् बली है। उसे कोई भी देव- 5
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