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Then Meghmukh Nagkumar Devas told Aapat Kirats, 'O beloved of फ्र gods! Chakravarti Bharat who is very glorious, very grand and who has pleasures of excellent order has attacked your region. No one is capable of stopping him whether he is a god, a demi-god like Kimpurush Mahorag or Gandharva. Nobody can cause any obstacle in his way. He cannot be stopped by weapons, by fire or by any spiritual mantra. Still in order to help you in achieving your object we shall create some obstacles and disturbances for him. Saying so they departed. They by fluid process, took out the space points of their soul and with the help of atoms collected by them, created clouds with the fluid process. They then came to the army camp of king Bharat. Soon those clouds started roaring slowly. There was also lightening Soon it started raining. For continuously seven days it rained in torrents. The dropping was as thick as a thick stick and thick rod for closing door.
छत्ररत्न का प्रयोग USE OF UMBRELLA (CHHATRA RATNA)
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७५. तए णं से भरहे राया उप्पिं विजयक्खंधावारस्स जुग - मुसल - मुट्ठिप्यमाणमेत्ताहिं धाराहिं 5 ओघमेघं सत्तरतं वासं वासमाणं पासइ पासित्ता चम्मरयणं परामुसइ, तए णं तं सिरिवच्छसरिसरूवं वेढो भाणिअब्बो दुवासलजो अणाई तिरिअं पवित्थरइ, तत्थ साहिआई, तए णं से भरहे राया संखधावारबले चम्मरयणं दुरूहइ दुरूहित्ता दिव्वं छत्तरयणं परामुसइ, तए णं णवणउइसहस्स– कंचन - सलाग - परिमंडिअं महरिहं अझं णिव्वणसुपसत्थविसिट्ठलट्ठकंचणसुपुट्ठदंडं मिउरायय- वट्ट - लट्ठ - अरविंद - कण्णि असमाणरूवं वत्थिपएसे अ पंजरविराइअं विविहभत्तिचित्तं मणि - मुत्त - पवाल - तत्त - तवणिज्ज -पंचवण्णिअ-धोअरयणरूवरइयं रयण-मरीई - मसोप्पणाकप्पकारमणुरंजिएल्लियं रायलच्छिचिंधं अज्जुण - सुवण्ण-पंडुर5 पच्चत्थअ - पट्टदेस भागं तहेव तवणिज्ज -पट्टधम्मंतपरिगयं अहिअ - सस्सिरीअं सारयरयणिअर-विमलपडिपुण्णचंदमंडलसमाणरूवं णरिंद - वामप्पमाण - पगइवित्थडं कुमुदसंडधवलं रण्णो संचारिमं विमानं सूरायववायबुट्ठिदोसाण य खयकरं तवगुणेहिं लद्धं
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( गाहा )
पमाणराईण तवगुणाण फलेगदेसभागं विमाणवासेवि दुल्लहतरं वग्घारिअ - मल्ल - दाम - कलावं सारय-धवलब्भरययणिगरप्पगासं दिव्वं छत्तरयणं महिवइस्स धरणिअलपुण्णइंदो । तए णं से दिव्वे छत्तरयणे भरणं रण्णा परामुट्ठे समाणे खिप्पामेव दुवालस जोअणाई, पवित्थरइ साहिआई तिरिअं ।
अहयं बहुगुणदाणं उऊण विवरी असुहकयच्छायं । छत्तरयणं पहाणं सुदुल्लहं अप्पपुण्णाणं ॥ १ ॥
७५. राजा भरत ने अपनी सेना पर युग, मूसल तथा मुष्टिका जैसी मोटी धाराओं के रूप में सात दिन-रात तक बरसती हुई वर्षा को देखा। देखकर उसने चर्मरत्न को हाथ से स्पर्श किया। वह चर्मरत्न 5 श्रीवत्स - स्वस्तिकविशेष जैसा रूप लिये था। चक्रवर्ती राजा भरत द्वारा छुआ गया दिव्य चर्मरल कुछ
Jambudveep Prajnapti Sutra
5 जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र
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(198)
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