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________________ ת ת ת ת ת ת ת ת ת ת 35岁55555555555555555555555555555555 # किण्णरेण वा किं पुरिसेण वा महोरगेण वा गंधब्बेण वा सत्थप्पओगेण वा अग्गिपओगेण वा मंतप्पओगेण वा । उद्दवित्तए पडिसेहित्तए वा, तहावि अ णं तुम्भं पियट्टयाए भरहस्स रण्णो उवसग्गं करेमोत्ति कटु तेसिं । आवाडचिलायाणं अंतिआओ अवक्कमन्ति अवक्कमित्ता वेउब्बियसमुग्घाएणं समोहणंति २ त्ता महाणीअं । विउव्वंति २ ता जेणेव भरहस्स रण्णो विजयक्खंधावारणिवेसे तेणेव उवागच्छंति २ ता उप्पिं विजयक्खंधावारणिवेसस्स खिप्पामेव पततुतणायंति खिप्पामेव विज्जुयायन्ति विज्जुयाइत्ता खिप्पामेव जुगमुसल-मुट्ठिप्पमाणमेत्ताहिं धाराहिं ओघमेघं सत्तरत्तं वासं वासिउं पवत्ता यावि होत्था। ७४. [ ३ ] मेघमुख नागकुमार देवों का यह कथन सुनकर आपात किरात चित्त में हर्षित, परितुष्ट म तथा आनन्दित हुए, उठे। उठकर जहाँ मेघमुख नागकुमार देव थे, वहाँ आये। वहाँ आकर हाथ जोड़े, । अंजलि-बाँधे उन्हें मस्तक से लगाया। फिर मेघमुख नागकुमार देवों को जय-विजय शब्दों द्वारा उनका # जयनाद, विजयनाद किया और बोले-देवानुप्रियो ! जिसे कोई नहीं चाहता, उस मृत्यु को चाहने वाला, H दुःखद अन्त एवं अशुभ लक्षण वाला अभागा, लज्जा, शोभा से परिवर्जित कोई एक पुरुष है, जो # बलपूर्वक जल्दी-जल्दी हमारे देश पर चढ़ा आ रहा है। देवानुप्रियो ! आप उसे वहाँ से इस प्रकार फैंक । दीजिए जिससे वह हमारे देश पर बलपूर्वक आक्रमण नहीं कर सके, आगे नहीं बढ़ सके। # तब मेघमुख नागकुमार देवों ने आपात किरातों से कहा-देवानुप्रियो ! तुम्हारे देश पर आक्रमण म करने वाला महाऋद्धिशाली, परम द्युतिमान्, परम सौख्ययुक्त, चातुरन चक्रवर्ती भरत नामक राजा है। । उसे न कोई देवता, न कोई किंपुरुष, न कोई महोरग तथा न कोई गन्धर्व ही रोक सकता है, न बाधा । उत्पन्न कर सकता है। न उसे शस्त्र प्रयोग द्वारा, न अग्नि-प्रयोग द्वारा तथा न मन्त्र-प्रयोग द्वारा ही म रोका जा सकता है। फिर भी हम तुम्हारा अभीष्ट साधने हेतु राजा भरत के लिए उपसर्ग-विघ्न उत्पन्न करेंगे। ऐसा कहकर वे आपात किरातों के पास से चले गये। उन्होंने वैक्रिय समुद्घात द्वारा आत्म# प्रदेशों को देह से बाहर निकाला। आत्म-प्रदेश बाहर निकालकर उन द्वारा गृहीत पुद्गलों के सहारे बादलों की विकुर्वणा की। वैसा कर जहाँ राजा भरत की छावनी थी, वहाँ आये। बादल शीघ्र ही धीमे# धीमे गरजने लगे। बिजलियाँ चमकने लगीं। वे शीघ्र ही पानी बरसाने लगे। सात दिन-रात तक अर्गला, । मूसल जैसी मोटी धाराओं से पानी बरसता रहा। 74. [3] Aapat Kirats felt highly pleased and satisfied at these words of F Meghakumar Devas. They got up from their place and came near those celestial beings. They folded their hands and touched their faces with it. They honoured those gods with shouts of success and said, Devanupriya ! Some one with full force is coming forward towards our country. It appears he is desiring death which no one desires. He is ultimately going i to end miserably, is unfortunate and has bad signs. He is shameless and without any glory. You please throw him out from our region in such a way that he may not have the courage and strength of attacking our country again and that he may not come forward. गगगगगगगगगगगगगगगगगगगाजा1111111111111111 ת ת ת ת ת तृतीय वक्षस्कार (197) Third Chapter Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002911
Book TitleAgam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni, Shreechand Surana
PublisherPadma Prakashan
Publication Year2006
Total Pages684
LanguageHindi, English
ClassificationBook_Devnagari, Book_English, Agam, Canon, Conduct, & agam_jambudwipapragnapti
File Size21 MB
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