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055555555555555555554545455455555555555550 के इस प्रकार परस्पर विचार कर उन्होंने वैसा करने का निश्चय किया। वे उत्कृष्ट, तीव्र गति से चलते ॥
हुए, जम्बूद्वीप के उत्तरार्ध में जहाँ सिन्धु महानदी थी, जहाँ आपात किरात थे, वहाँ आये। उन्होंने 5 छोटी-छोटी घण्टियों सहित पंचरंगे उत्तम वस्त्र पहन रखे थे। आकाश में अधर अवस्थित होते हुए वे 卐 आपात किरातों से बोले-आपात किरातो ! देवानुप्रियो ! तुम बालू के संस्तारकों पर अवस्थित हो,
निर्वस्त्र हो आतापना सहते हुए, तेले ही तपस्या में संलग्न होते हुए हमारा-(मेघमुख नागकुमार देवों ॐ का) जो तुम्हारे कुल-देवता हैं, ध्यान कर रहे हो। यह देखकर हम तुम्हारे कुलदेव मेघमुख नागकुमार तुम्हारे समक्ष प्रकट हुए हैं। देवानुप्रियो ! तुम क्या चाहते हो? हम तुम्हारे लिए क्या करें?
74. [2] When Meghamukh Nagakumar gods saw their seats trembling they applied their avadhi jnana and saw the Aapat Kirats. After seeing them they talked to each other, 'O the blessed of gods ! In the northern part of Bharat area in Jambu continent at the bank of Sindhu river, Aapat Kirats are engaged in three day fast on beds of sand keeping their faces upwards and are bearing the heat with the naked body. They are meditating on us, as we are their family gods. It is therefore, proper for us that we should appear before them.'
After mutual consultation, they decided to act accordingly. Ti moving at a fast speed, came to the northern region of Bharat area in
Jambu continent at Sindhu river where Aapat Kirats were stationed. $ They were bearing clothes of five colours with bells fixed thereon.si
Positioning themselves in the space without any support, they addressed Aapat Kirats, 'O the blessed ones! You are stationed on beds of sand. You are bearing the heat keeping yourselves totally naked. You are on three day fast meditating on us, your family gods. So, seeing you in this state 46 we Meghamukh Nagakumars, your family gods, have appeared before you. Tell us what you really want. What should we do for you? मेघमुख देवों द्वारा उपद्रव DISTURBANCES BY MEGHMUKH DEVAS
७४. [३] तए णं ते आवाडचिलाया मेहमुहाणं णागकुमाराणं देवाणं एअमटुं सोच्चा णिसम्म हट्टतुट्ठचित्तमाणंदिआ जाव हिअया उट्ठाए उद्वेति जेणेव मेहसुहा णागकुमारा देवा तेणेव उवागच्छंति 卐 उवागच्छित्ता करयलपरिग्गहियं जाव मत्थए अंजलि कटु मेहमुहे णागकुमारे देवे जएणं विजएणं वद्धावेंति, वद्धावित्ता एवं वयासी-एस णं देवाणुप्पिए ! केइ अप्पत्थिअपत्थिए दुरंतपंतलक्खणे हिरि-सिरि + परिवज्जिए जे णं अम्हं विसयस्स उवरि विरिएणं हब्बमागच्छइ, तं तहा णं घत्तेह देवाणुप्पिआ ! जहा णं
एस अम्हं विसयस्स उवरिं विरिएणं णो हव्वमागच्छइ। * तए णं ते मेहमुहा णागकुमारा देवा ते आवाडचिलाए एवं वयासी-एस णं भो देवाणुप्पिा ! भरहे णामं कराया चाउरंतचक्कवट्टी महिड्डीए महज्जुईए जाव महासोक्खे, णो खलु एस सक्को केणइ देवेण वा दाणवेण वा जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र
(196)
Jambudveep Prajnapti Sutra
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