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की। वे अपने मुख ऊँचे किये, निर्वस्त्र हो घोर आतापना सहते हुए अपने कुल-देवता मेघमुख नामक । नागकुमारों का, मन में ध्यान करते हुए तेले की तपस्या में संलग्न हो गए। जब तेले की तपस्या परिपूर्ण होने को थी, तब मेघमुख नागकुमार देवों के आसन चलित हुए।
74. [1] When Sushen, the army chief, killed and injured Aapat Kirat, they ran away out of fear and disgust in a state of pain and suffering. They did not have the requisite strength to remain steadfast in the battle-field. They started to have feeling that they are weak and without any courage. Feeling that they are not capable of facing the enemy, they ran away to a distance of many yojans from there. Then they joined together at a place and came near Sindhu river. They prepared beds of sand there and stationed themselves there. They undertook three day! fast. They meditated upon their family god keeping their faces upwards, keeping their body clotheless and bearing the scorching heat of the sun.
Thus they engaged themselves in three day austerities concentrating, i their thought on Meghamukh, their family god that belongs to Nagakumar class of gods. Then the seats of Meghamukh gods moved.
७४. [२ ] तए णं ते मेहमुहा णागकुमारा देवा आसणाई चलिआई पासंति पासित्ता ओहिं पजंति । । पउंजित्ता आवाडचिलाए ओहिणा आभोएंति, २ त्ता अण्णमणं सद्दावेंति २ ता एवं वयासी-एवं खलु
देवाणुप्पिआ ! जंबुद्दीवे दीवे उत्तरद्धभरहे वासे आवाडचिलाया सिंधूए महाणईए वालुआसंथारोवगया । । उत्ताणगा अवसणा अट्ठमभत्तिआ अम्हे कुलदेवए मेहमुहे णागकुमारे देवे मणसि करेमाणा २ चिटुंति, तं
सेअं खलु देवाणुप्पिआ ! अम्हं आवाडचिलायाणं अंतिए पाउन्भवित्तएत्ति। ___ कटु अण्णमण्णस्स अंतिए एअमटुं पडिसुणेति, पडिसुणेत्ता ताए उक्किट्ठाए तुरिआए जाव । वीतिवयमाणा २ जेणेव जंबुद्दीवे दीवे उत्तरद्धभरहे वासे जेणेव सिंधू महाणई जेणेव आवाडचिलाया तेणेव । उवागच्छंति उवागच्छित्ता अंतलिक्खपडिवण्णा सखिखिणिआई पंचवण्णाई वत्थाई पवरपरिहिआ ते ।
आवाडचिलाए एवं वयासी-हं भो आवाडचिलाया ! जणं तुन्भे देवाणुप्पिआ ! वालुआसंथारोवगया , उत्ताणगा अवसणा अट्ठमभत्तिआ अम्हे कुलदेवए मेहमुहे णागकुमारे देवे मणसि करेमाणा २ चिट्ठह, तए । णं अम्हे मेहमुहा णागकुमारा देवा तुब्भं कुलदेवया तुम्हं अंतिअण्णं पाउन्भूआ, तं वदह णं देवाणुप्पिआ ! किं करेमो के व भे मणसाइए?
७४. [ २ ] मेघमुख नागकुमार देवों ने अपने आसन चलित देखे तो अपने अवधिज्ञान का प्रयोग : किया। अवधिज्ञान द्वारा आपात किरातों को देखा। उन्हें देखकर वे परस्पर यों कहने लगे-देवानुप्रियो ! जम्बूद्वीप के अन्तर्गत उत्तरार्ध भरत क्षेत्र में सिन्धु महानदी पर बालू के संस्तारकों पर अवस्थित हो आपात किरात अपने मुख ऊँचे किये हुए तथा निर्वस्त्र हो आतापना सहते हुए तेले की तपस्या में संलग्न हैं। वे हमारा-(मेघमुख नागकुमार देवों का) जो उनके कुल-देवता हैं, ध्यान कर रहे हैं। देवानुप्रियो ! यह उचित है कि हम उन आपात किरातों के समक्ष प्रकट हों।
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तृतीय वक्षस्कार
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Third Chapter
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