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म उवरि विरिएणं हव्वमागच्छइ तं तहा णं घत्तामो देवाणुप्पिआ ! जहा णं एस अम्हं विसयस्स उवरि विरिएणं णो हव्वमागच्छइत्ति कटु।
अण्णमण्णस्स अंतिए एअमट्ठ पडिसुणंति पडिसुणित्ता सण्णद्ध-बद्धवम्मिय-कवया उप्पीलिअसरासणपट्टिआ पिणद्धगेविज्जा बद्धआविद्ध-विमलवर-चिंधपट्टा गहिआउह-प्पहरणा जेणेव भरहस्स रण्णो अग्गाणीअं तेणेव उवागच्छंति उवागच्छित्ता भरहस्स रण्णो अग्गाणीएण सद्धिं संपलग्गा यावि होत्था।
तए णं ते आवाडचिलाया भरहस्स रण्णो अग्गाणीअं हयमहिअ-पवरवीरघाइअ-विवडिअ-चिंधद्धय9 पड़ागं किच्छप्पाणोवगयं दिसोदिसिं पडिसेहिति।
७२. उस समय भरत क्षेत्र के उत्तरार्ध भाग में आवाड-आपात नामक किरात (भील) रहते थे। वे सम्पत्तिशाली, दीप्तिमान, प्रभावशाली, अपने जातीय जनों में विख्यात, रहने के मकान, ओढ़ने-बिछाने ऊ के वस्त्र, बैठने के उपकरण, माल-असबाब ढोने की गाड़ियाँ, वाहन-सवारियाँ आदि विपुल साधन
सामग्री तथा स्वर्ण, रजत आदि प्रचुर धन के स्वामी थे। व्यावसायिक दृष्टि से धन के सम्यक् विनियोग है और प्रयोग में कुशलतापूर्वक द्रव्योपार्जन में संलग्न थे। उनके यहाँ भोजन कर चुकने के बाद भी खानेॐ पीने के बहुत पदार्थ बचते थे। उनके घरों में बहुत से नौकर-नौकरानियाँ, गायें, भैंसें, बैल, पाड़े, भेड़ें,
बकरियाँ आदि थीं। वे इतने रौबीले थे कि उनका कोई तिरस्कार या अपमान करने का साहस नहीं कर ॐ पाता था। वे अपनी प्रतिज्ञा का निर्वाह करने में, दान देने में शौर्यशाली थे, युद्ध में वीर थे, भूमण्डल को + आक्रान्त करने में समर्थ थे। उनके पास सेना और सवारियों की प्रचुरता एवं विपुलता थी। अनेक ऐसे युद्धों में, जिनमें मुकाबले की टक्करें थीं, उन्होंने अपना पराक्रम दिखाया और विजय प्राप्त की थी।
उन किरातों के देश में अकस्मात् सैकड़ों उत्पात-अनिष्टसूचक निमित्त उत्पन्न हुए। असमय के बादल ॐ गरजने लगे, असमय में बिजली चमकने लगी, फूलों के खिलने का समय न आने पर भी पेड़ों पर फूल म आते दिखाई देने लगे। आकाश में भूत-प्रेत पुनः-पुनः नाचने लगे। आपात किरातों ने अपने देश में इन - सैकड़ों उत्पातों को उत्पन्न होते देखा। वैसा देखकर वे आपस में कहने लगे-देवानुप्रियो ! हमारे देश में ऊ असमय में बादलों का गरजना, असमय में बिजली का चमकना, असमय में वृक्षों पर फूल आना, 卐 + आकाश में बार-बार भूत-प्रेतों का नाचना आदि सैकड़ों उत्पात प्रकट हुए हैं। देवानुप्रियो ! न मालूम * हमारे देश में कैसा उपद्रव होगा। वे यों सोचकर उदास हो गये। राज्य--भ्रंश (राजा की मृत्यु) धनापहार
आदि की चिन्ता से उत्पन्न शोकरूपी सागर में डूब गये। अपनी हथेली पर मुँह रखे वे आर्त्तध्यान में ग्रस्त हो भूमि की ओर दृष्टि डाले सोच-विचार में पड़ गये। ___ तब राजा भरत हजारों राजाओं को साथ लिये चक्ररल द्वारा दिखाये हुए मार्ग के सहारे तमिस्रा गुफा ॐ के उत्तरी द्वार से इस प्रकार निकला, जैसे बादलों के प्रचुर अन्धकार को चीरकर चन्द्रमा निकलता है। की आपात किरातों ने राजा भरत की सेना को जब आगे बढ़ते हुए देखा तो वे तत्काल अत्यन्त क्रुद्ध, ॐ रुष्ट, विकराल तथा कुपित होते हुए, मिसमिसाहट करते हुए तेज साँस छोड़ते हुए आपस में कहने ॐ लगे-देवानुप्रियो ! मृत्यु को चाहने वाला, दुःखद अन्त एवं अशुभ लक्षण वाला, अशुभ दिन में जन्मा जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र
(186)
Jambudveep Prajnapti Sutra
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