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६८. [ १ ] सिन्धु महानदी को पार कर अप्रतिहत शासन वाला वह सेनापति सुषेण ग्राम, आकर फ्र नगर, पर्वत, खेट, कर्वट, मडम्ब, पट्टन आदि जीतता हुआ, सिंहलदेश, बर्बरदेशवासी जनों को, अंगलोक, 5 बलावलोक नामक क्षेत्रों को, अत्यन्त रमणीय, उत्तम मणियों तथा रत्नों के भंडारों से समृद्ध यवन द्वीप को, अरब देश के, रोम देश के लोगों को अलसंड- देशवासियों को, पिक्खुरों, कालमुखों, विविध म्लेच्छ जातीय फ्र जनों को तथा उत्तर वैताढ्य पर्वत की तलहटी में बसी हुई अनेक प्रकार की म्लेच्छ जाति के जनों को, दक्षिण-पश्चिम (नैऋत्य) कोण से लेकर सिन्धु नदी तथा समुद्र के संगम तक सर्वश्रेष्ठ कच्छ देश को जीतकर वापस मुड़ा। कच्छ देश के अत्यन्त सुन्दर भूमिभाग पर विश्राम करने लगा।
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तब उन जनपदों देशों, नगरों, पत्तनों के स्वामी, अनेक स्वर्ण आदि की खानों के मालिक, मण्डलपति, पत्तनपतिवृन्द ने आभरण - अंगों पर धारण करने योग्य अलंकार, भूषण - उपांगों पर धारण करने योग्य अलंकार, रत्न, बहुमूल्य वस्त्र, अन्यान्य श्रेष्ठ, राजोचित वस्तुएँ लेकर हाथ जोड़कर, जुड़े हुए हाथ मस्तक लगाकर उपहार के रूप में सेनापति सुषेण को भेंट कीं। वापस लौटते हुए उन्होंने फ पुनः हाथ जोड़े, उन्हें मस्तक से लगाया, नतमस्तक हुए। वे बड़ी नम्रता से बोले - " आप हमारे स्वामी हैं। 5 देवता की ज्यों आपके हम शरणागत हैं, आपके देशवासी हैं।" इस प्रकार विजयसूचक शब्द कहते हुए जय-जयकार किया। तब उन सबको सेनापति सुषेण ने पूर्ववत् यथायोग्य कार्यों में प्रस्थापित किया, नियुक्त किया, उनका सम्मान किया और उन्हें विदा किया। वे अपने-अपने नगरों, पत्तनों आदि स्थानों में लौट आये।
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68. [1] After crossing Sindhu river Sushen, the army chief, who was never defeated went ahead conquering villages, mines, towns, hills, grounds, karvat, madambs, ports, Simhal region, Barbar population, 卐 Ang region, Balava region, Yavan island that was attractive and had rich treasures of jewels and precious stones, Arab country, Romans, Alasand population, the barbarians (mlechha) namely Pikhurs, Kalmukhs and the people belonging to various barbarian tribes settled at the foot of 卐 Vaitadhya mountain. He stopped only after conquering Kuchh region फ which was extending from south-west corner up to the place where 卐 Sindhu river joins the Ocean. He then took rest in the extremely beautiful land of Kuchh region.
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Then the masters of those areas, the towns, the suburbs, the gold mines and the like, the rulers of the divisions dressed themselves properly with appropriate ornaments and decorations, took the jewels, costly clohes, and suitable things worthy of royal presentation. They 卐 folded their hands, touched their heads with folded hands and uttered फ्र humbly, ‘you are our master. We are your subjects. Like the divine one, we seek your refuge, we are citizens of your domain. Uttering such words of praise and salutaion, they greeted the victor. Then Sushen, the army तृतीय वक्षस्कार
Third Chapter
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