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5 घोष से युक्त था । उसमें छोटी-छोटी घंटियाँ लगी थीं। वह दिव्य प्रभावयुक्त था, मध्याह्न काल के सूर्य के
सदृश तेजयुक्त था, गोलाकार था, अनेक प्रकार की मणियों एवं रत्नों की घंटियों के समूह से परिव्याप्त था । सब ऋतुओं में खिलने वाले सुगन्धित पुष्पों की मालाओं से युक्त था, आकाश में अवस्थित था, गतिमान था, एक हजार यक्षों से घिरा था। दिव्य वाद्यों के शब्द से गगनतल को मानो भर रहा था। उसका सुदर्शन नाम था । राजा भरत के उस प्रथम - प्रधान चक्ररत्न ने यों शस्त्रागार म दक्षिण-पश्चिम दिशा में नैऋत्य कोण में वरदाम तीर्थ की ओर प्रयाण किया ।
निकलकर !
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58. [4] After the conclusion of eight day celebrations, the Chakra Ratna moved out of weaponery. The joints of the spokes of Chakra Ratna were studded with diamonds. The spokes were also bearing red jewels. Its centre (nemi) was of yellowish gold. Its inner ring was studded with precious stones of many types. That wheel (Chakra) was decorated with fi beads and pearls. It resonated with sound of twelve musical instruments
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including Mridang. Many small bells were fitted on it. It was shining like bright sun of noon time. It had many bells of precious stones and ! jewels. There were garlands of flowers blossoming in all seasons on it. It was located in the sky and was moving. A thousand Yakshas (a class of Y fi gods) were surrounding it. It appeared that the entire environment at that time was full of divine music. Its name was Sudarshan. That y Chakra Ratna of king Bharat thus after coming out of the ordnance store! went toward Vardam Tirth in the south-west direction. 4 वरदाम तीर्थ - विजय CONQUEST OF VARDAM TIRTH
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५९. तए णं से भरहे राया तं दिव्वं चक्करयणं दाहिणपच्चत्थिमं दिसिं वरदामतित्थाभिमुहं पयातं ५ चावि पासइ २त्ता हट्टतुट्ठ० कोटुंबिअपुरिसे सद्दावेइ २ त्ता एवं वयासी - 'खिप्पामेव भो देवाणुष्पिआ ! ५ हय-गय-रह - पवरचाउरंगिणिं सेण्णं सण्णाहेह, आभिसेक्कं हत्थिरयणं पडिकप्पेह, त्ति कट्टु मज्जणघरं अणुपविस २त्ता तेणेव कमेणं जाव धवलमहामेहणिग्गए जाव ।
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से अवरचामराहिं उद्धव्वमाणीहिं २ माइ अवरफलयपवर - परिगर - खेडय - वरवम्मकवयमाढीसहस्सकलिए उक्कडवर - मउडतिरीड - पडाग - झय - वेजयंति - चामर - चलंतछत्तंधयारकलिए प्र असिखेवणि-र - खग्गचावणारायकणयकप्पणिसूल - लउड - भिंडिमाल - धणुह - तोणसरपहरणेहि काल-पील- रुहिर - पीअ - सुक्किल्ल - अणेगचिंधसयसण्णिविद्वे अप्फोडिअसीहणाय - छेलिअ हलिअ - हत्थगुलुगुलाइ अ- अणेगरह - सयसहस्सघणघणेंत - णीहम्ममाणसद्दसहिएण जमग- समग- 5 भंभाहोरंभ किणितखर- मुहिमुगुंद - संखिअ - परिलिवच्चग - परिवाइणिवंस - वेणुविपंचि - 4 5 महतिकच्छभिरिगिसिगिअ - कलताल - कंसताल - करधाणुत्थिएण महया सद्दसण्णिणादेण सयलमवि जीवलोगं पूरयंते बलवाहणसमुदएणं एवं जक्खसहस्सपरिवुडे वेसमणे चेव धणवई अमरपतिसण्णिभाइ 5 इद्धीए पहिअकित्ती गामागर - नगर - खेडकब्बड तहेव सेसं जाव विजयखंधावारणिवेसं करेइ २ त्ता प्र
Third Chapter
त तृतीय वक्षस्कार
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