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________________ a555FFFFFFFFFFFFFFFFFFFFFFFFFFFFFFFFFFFF 5FFFFFFFFF ॐ वद्धइरयणं सद्दावेइ २ ता एवं वयासी-खिप्पामेव भो देवाणुप्पिआ ! मम आवसहं पोसहसालं च करेहि, के ममेअमाणत्तिअं पच्चप्पिणाहि। म ५९. राजा भरत ने दिव्य चक्ररत्न को दक्षिण-पश्चिम दिशा में वरदाम तीर्थ की ओर जाते हुए देखा। देखकर वह बहुत हर्षित तथा परितुष्ट हुआ। उसने कौटुम्बिक पुरुषों को बुलाया। उन्हें बुलाकर ॐ कहा-'देवानुप्रियो ! घोड़े, हाथी, रथ तथा श्रेष्ठ योद्धाओं-पदातियों से युक्त चातुरंगिणी सेना को तैयार करो, आभिषेक्य हस्तिरत्न को शीघ्र ही सुसज्ज करो।' यों कहकर राजा स्नानघर में प्रविष्ट हुआ। धवल ॐ महामेघ से निकलते हुए चन्द्रमा की ज्यों सुन्दर प्रतीत होता वह राजा स्नानादि सम्पन्न कर स्नानघर से के बाहर निकला। (पूर्व सूत्रानुसार) उत्तम, श्वेत चँवर उस पर डुलाये जा रहे थे। जिन्होंने अपने-अपने हाथों में उत्तम ढालें ले रखी थीं, श्रेष्ठ कमरबन्धों से अपनी कमर बाँध रखी थीं, उत्तम कवच धारण कर रखे थे, ऐसे हजारों : योद्धाओं से वह विजय-अभियान पर प्रस्तुत था। उन्नत, उत्तम, मुकुट, कुण्डल, पताका-छोटी-छोटी झण्डियाँ, ध्वजा-बड़े-बड़े झण्डे तथा वैजयन्ती-दोनों तरफ दो-दो पताकाएँ जोड़कर बनाये गये झण्डे, म चँवर, छत्र-इनकी सघनता से अंधकार जैसा लग रहा था। असि-तलवार विशेष, क्षेपणी-गोफिया, ॐ खड्ग-सामान्य तलवार, चाप-धनुष, नाराच-सम्पूर्णतः लोह-निर्मित बाण, कणक-बाणविशेष, + कल्पनी-कृपाण, शूल, लकुट-लट्ठी, भिन्दिपाल-वल्लम या भाले, बाँस के बने धनुष, तूणीर-तरकश, शर-सामान्य बाण आदि शस्त्रों से, जो कृष्ण, नील, रक्त, पीत तथा श्वेत रंग के सैकड़ों चिह्नों से युक्त - 卐 थे, व्याप्त था। भुजाओं को ठोकते हुए, सिंहनाद करते हुए योद्धा राजा भरत के साथ-साथ चल रहे थे। 5 घोड़े हर्ष से हिनहिना रहे थे, हाथी चिंघाड़ रहे थे, सैकड़ों हजारों-लाखों रथों के चलने की ध्वनि, घोड़ों + . को ताड़ने हेतु प्रयुक्त चाबुकों की आवाज, भम्भा-ढोल, कौरम्भ-बड़े ढोल, क्वणिता-वीणा, खरमुखी- मैं काहली, मुकुन्द-मृदंग, शंखिका-छोटे शंख, परिली तथा वच्चक-घास के तिनकों से निर्मित है # वाद्य-विशेष, परिवादिनी-सप्त तन्तुमयी वीणा, दंस-अलगोजा, वेणु-बाँसुरी, विपञ्ची-विशेष प्रकार फकी वीणा, महती कच्छपी कछुए के आकार की बड़ी वीणा, रिगीसिगिका-सारंगी, करताल, कांस्यताल, + परस्पर हस्त-ताड़न आदि से उत्पन्न विपुल ध्वनि-प्रतिध्वनि से मानो सारा जगत् आपूर्ण हो रहा था। ॐ इन सबके बीच राजा भरत अपनी चातुरंगिणी सेना तथा विभिन्न वाहनों से युक्त, सहस्र यक्षों से संपरिवृत कुबेर सदृश वैभवशाली तथा अपनी ऋद्धि से इन्द्र जैसा यशस्वी-ऐश्वर्यशाली प्रतीत होता था। वह ग्राम, आकर, नगर, खेट, कर्वट, मडम्ब आदि से सुशोभित भूमण्डल की विजय करता हुआ-वहाँ 卐 के शासकों को जीतता हुआ, उत्तम, श्रेष्ठ रत्नों को भेंट के रूप में स्वीकार करता हुआ, दिव्य चक्ररत्न म का अनुगमन करता हुआ-उसके पीछे-पीछे चलता हुआ, एक-एक योजन पर पड़ाव डालता हुआ जहाँ ॐ वरदाम तीर्थ था, वहाँ आया। आकर वरदाम तीर्थ से न अधिक दूर, न अधिक समीप-कुछ ही दूरी पर बारह योजन लम्बा, नौ योजन चौड़ा, विशिष्ट नगर के सदृश अपना सैन्य-शिविर लगाया। उसने वर्द्धकिरन को बुलाया। उससे कहा-देवानुप्रिय ! शीघ्र ही मेरे लिए आवास-स्थान तथा पौषधशाला का + निर्माण करो। मेरे आदेशानुरूप कार्य सम्पन्न कर मुझे सूचित करो। | जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र (154) Jambudveep Prajnapti Sutra 85555555555555555)555555555555555555555555555555558 8555 55555555555555 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002911
Book TitleAgam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni, Shreechand Surana
PublisherPadma Prakashan
Publication Year2006
Total Pages684
LanguageHindi, English
ClassificationBook_Devnagari, Book_English, Agam, Canon, Conduct, & agam_jambudwipapragnapti
File Size21 MB
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