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कर स्नानघर से बाहर निकला। बाहर निकलकर जहाँ भोजनमण्डप था, वहाँ आया। भोजनमण्डप में आकर सुखासन से बैठा, तेले का पारणा किया। तेले का पारणा कर वह भोजनमण्डप से बाहर निकला, 5 जहाँ बाह्य उपस्थानशाला थी, सिंहासन था, वहाँ आया । आकर पूर्व की ओर मुँह किये सिंहासन पर 卐 आसीन हुआ । सिंहासनासीन होकर उसने अठारह श्रेणी - प्रश्रेणी के पुरुषों को बुलाया। बुलाकर कहा- 5 ‘देवानुप्रियो ! मागध तीर्थकुमार देव को विजित कर लेने के उपलक्ष में अष्टदिवसीय महोत्सव आयोजित करो। उस बीच शुल्क और राज्य-कर आदि न लिये जाएँ, यह उद्घोषित करो। राजा भरत द्वारा यों आदेश देने पर उन्होंने प्रसन्नतापूर्वक वैसा ही किया। राजा के पास कर यथावत् निवेदित किया।
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58. [3] Thereafter, king Bharat turned back his chariot. He then 卐 passing near Magadh Tirth came back through Lavan Samudra to his army camp and the place where outer assembly hall was located. He then stopped his horses, halted the chariot and came down. Thereafter, he went to the place meant for taking bath. He entered the bathroom. The king who was as handsome as the moon coming out of shining dark clouds came out from the bathroom after taking bath. He then came to the place where the dining hall was located. He sat in a comfortable position in the dining hall and broke his three day fast. Thereafter, he came out from the dining hall to the assembly hall. He then sat on his seat facing eastwards. Thereafter, he called his officials of eighteen divisions and sub-divisions and said, 'O the blessed ! Arrange eight day celebrations in view of the conquest over Magadh Tirth Kumar deva. During this period no state dues, fees or taxes be charged. Make such an announcement. They then happliy made such an announcement as ordered by king Bharat and then informed the king accordingly.
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जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र
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चक्ररत्न का वरदाम तीर्थ की ओर प्रयाण DEPARTURE OF CHAKRA RATNA TOWARDS VARDAM TIRTH
५८. [४] तए णं से दिव्वे चक्करयणे वइरामयतुंबे लोहिअक्खामयारए जंबूणयणेमीए णाणामणि- खुरप्प - थालपरिगए मणिमुत्ताजाल-भूसिए सदिघोसे सखिंखिणीए दिव्वे तरुणरविमंडलणिभे णाणामणिरयणघटि आजालपरिक्खित्ते सव्वोउ असुरभिकुसुम आसत्तमल्लदामे अंतक्खिपविणे जक्खसहस्ससंपरिवुडे दिव्यतुडिअसद्दसण्णिणादेणं पूरेंते चेव अंबरतलं णामेण य सुदंसणे णरवइस्स पढमे चक्करयणे मागहतित्थकुमारस्स देवस्स अट्ठाहिआए महामहिमाए णिव्वत्ताए समाणीए आउहघरसालाओ फ्र पडिणिक्खमइ २ त्ता दाहिणपच्चत्थिमं दिसिं वरदामतित्थाभिमुहे पयाए यावि होत्था।
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५८. [ ४ ] तत्पश्चात् राजा भरत का दिव्य चक्ररत्न अष्टदिवसीय महोत्सव के सम्पन्न हो जाने पर 5 शस्त्रागार से बाहर निकला। उस चक्ररत्न का आरों का जोड़ वज्रमय था - हीरों से जड़ा था। आरे लाल 5 रत्नों से युक्त थे। उसकी नेमि पीत स्वर्णमय थी। उसका भीतरी परिधि का भाग अनेक मणियों से जड़ा था। वह चक्र मणियों तथा मोतियों के समूह से विभूषित था। वह मृदंग आदि बारह प्रकार के वाद्यों के
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Jambudveep Prajnapti Sutra
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