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9555555555555555555555558 ॐ योजन चौड़ा है। योगदर्शन के व्यासभाष्य में तो जम्बूद्वीप के साथ ही सुमेरु पर्वत, जम्बू वृक्ष, नील
निषधपर्वत, उत्तर कुरु, लवण समुद्र आदि का भी वर्णन है। ये सभी नाम जैन ग्रन्थों से मिलते हैं। म बौद्ध धर्म के अभिधर्म कोष में जम्बूद्वीप, जम्बूवृक्ष, उत्तर कुरु, पूर्व विदेह आदि का भी उल्लेख ॥ + आता है। उक्त सन्दर्भो के आधार पर यह सुनिश्चित कहा जा सकता है कि जैन ग्रन्थों में वर्णित है
जम्बूद्वीप और उसके पर्वत, नदियाँ आदि कोई मनोकल्पित नाम नहीं हैं, परन्तु भारतीय संस्कृति की 卐 तीनों ही धाराओं-जैन, बौद्ध, वैदिक के ग्रन्थों में इसका सुव्यवस्थित किन्तु कुछ भिन्न-भिन्न रूपों में है
वर्णन मिलता है जो एक सर्वमान्य भौगोलिक हकीकत है। भारतीय ज्योतिष ग्रन्थ आज भी 'जम्बूद्वीप' ॐ नाम को महत्त्व देते हैं। प्रस्तुत आगम की विषय वस्तु इस आगम के सात वक्षस्कार (प्रकरण) हैं। प्रथम वक्षस्कार में गौतम स्वामी के प्रश्न का उत्तर देते ॥
न ने बताया है-यह जम्बद्रीप रथ के पहिये जैसा व प्रतिपर्ण चन्द्रमा जैसा गोलाकार है। ॐ कहीं-कहीं झालर या थाली की तरह इसकी आकृति गोल व चपटी बताई है। वैदिक पुराणों व बौद्ध + ग्रन्थों में भी इसकी आकृति गोल बताई गई है। इससे पता चलता है कि भारतीय धर्म ग्रन्थों की, पृथ्वी के
के आकार विषयक यह मान्यता सर्व सम्मत है। किन्तु आधुनिक विज्ञान में थाली की तरह चपटी की 5 जगह पृथ्वी का आकार नारंगी या गेंद की तरह गोल बताया है। यह अन्तर विवादास्पद बना हुआ है। कुछ जैन मनीषियों का कहना है कि जैन आगम वर्णित 'झल्लरी' या 'स्थाली' शब्द का अर्थ झल्लरी :
अर्थात् झालर नहीं, किन्तु 'झांझ' नामक वाद्ययंत्र और स्थाली का अर्थ थाली न होकर हण्डिया होता 卐 है। इस अर्थ के अनुसार वे प्राचीन आगमिक मान्यता व आधुनिक विज्ञान की मान्यताओं में संगति के
बैठाने का प्रयास भी कर रहे हैं। अस्तु . . . इसके साथ यह भी ध्यान देने की बात है, कि वैज्ञानिक 5 धारणा कोई अन्तिम निष्कर्ष या निर्णायक सत्य नहीं मानी जाती। विज्ञान सदा ही नवीन-नवीन खोजों
के आधार पर अपनी धारणा व स्थापनाएँ बदलता रहा है। वह गतिशील ज्ञान है। अतः यह भी सम्भव म - है कि कुछ समय बाद वैज्ञानिकों को इस धारणा में भी परिवर्तन करना पड़े। अनेक वैज्ञानिकों ने 'पृथ्वी , गोल है' इस मान्यता का खण्डन भी किया है। लन्दन की 'फ्लेट अर्थ सोसायटी' नामक संस्था के वैज्ञानिक पृथ्वी को चपटी सिद्ध करने में काफी अनुसंधान कर रहे हैं। अतः वैज्ञानिक मान्यता को अन्तिम स्थापना के रूप में स्वीकार नहीं किया जा सकता, जबकि आत्म द्रष्टा महर्षियों का कथन अधिक विश्वसनीय होता है। अस्तु . . . .
प्रथम वक्षस्कार में जम्बूद्वीप का सामान्य भौगोलिक परिचय है।
द्वितीय वक्षस्कार में अवसर्पिणी-उत्सर्पिणी काल चक्र का वर्णन है। पर्यावरण का जीवन पर प्रभाव
अवसर्पिणी काल चक्र के पहले तीन आरों के समय में पृथ्वी के पर्यावरण का मनुष्यों के आहारव्यवहार-स्वभाव चरित्र का जो वर्णन है वह आज पर्यावरण विज्ञान के परिप्रेक्ष्य में बहुत ही अनुसंधान १. तुलसी प्रज्ञा, अप्रैल, जून १९७५ पृष्ठ १०६ युवाचार्य महाप्रज्ञ
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