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________________ 155555555555555) )))))))))))))))))) प्राणवक्तव्य जैन आगमों को सरलतापूर्वक समझने के लिए उनके विषयों को चार अनुयोगों में विभक्त किया गया है-१. चरण करणानुयोग में जैसे दशवैकालिक, उत्तराध्ययनसूत्र आदि। इनमें मुख्य रूप में साधु तथा श्रावक के आचार-विचार का वर्णन है। २. धर्मकथानुयोग में धर्म के विविध अंगों को दृष्टान्तउदाहरण व कथानकों के माध्यम से निरूपण किया गया है। जैसे ज्ञातासूत्र, विपाक सूत्र आदि। ३. द्रव्यानुयोग में जीव-अजीव आत्मा-पुद्गल आदि द्रव्यों का वर्णन आता है। जैसे स्थानांग सूत्र, भगवती सूत्र आदि। ४. गणितानुयोग-इसमें मुख्यतः गणित पर आधारित ज्योतिष एवं भूगोल सम्बन्धी वर्णन मिलता है। जैसे जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति सूत्र आदि। प्रस्तुत जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र का मुख्य प्रतिपाद्य जम्बूद्वीप का वर्णन है। जम्बूद्वीप में आये मानव क्षेत्र, पर्वत, नदियाँ, मेरु पर्वत तथा मेरुपर्वत की प्रदक्षिणा करते सूर्य चन्द्र आदि ग्रह-नक्षत्र। इन सबका वर्णन इसी जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र में आता है। इसी विषय वस्तु को कुछ विस्तार के साथ कहें तो इसमें निम्न विषयों का कथन है जम्बूद्वीप का स्वरूप, विस्तार, प्राकार, जैन कालचक्र-अवसर्पिणी, उत्सर्पिणी आदि। चौदह कुलकर, प्रथम तीर्थंकर भगवान ऋषभदेव, बहत्तर कलाएँ, नारियों के लिए विशेषतः चौंसठ कलाएँ, बहुविधशिल्प, प्रथम चक्रवर्ती सम्राट भरत, षट्खण्डविजय, चुल्लहिमवान्, महाहिमवान्, वैताढ्य, निषध, गन्धमादन, यमक, कंचनगिरि, माल्यवन्त, मेरु, नीलवन्त, रुक्मी, शिखरी आदि पर्वत। भरत, हैमवत, हरिवर्ष, महाविदेह, उत्तरकुरु, रम्यक, हैरण्यवत, ऐरवत आदि क्षेत्र। बत्तीस विजय। गंगा, सिन्धु, शीता, शीतोदा, रूप्यकूला, सुवर्णकूला, रक्तवती, रक्ता आदि नदियाँ। पर्वतों, क्षेत्रों आदि के अधिष्ठातृदेव, तीर्थंकराभिषेक, सूर्य, चन्द्र, ग्रह, नक्षत्र, तारे आदि ज्योतिष्क देव। अयन, संवत्सर, मास, पक्ष, दिवस आदि एतत्सम्बद्ध अनेक विषयों का बड़ा ही विशद वर्णन इस आगम में हुआ है। ___ यह सूत्र हमारी जैन संस्कृति और इतिहास का ज्ञान कोष है। इस युग के प्रथम तीर्थंकर भगवान ऋषभदेव तथा प्रथम चक्रवर्ती राजा भरत का जितना विस्तृत व सर्वांगीण वर्णन इस आगम में है, वैसा अन्य सूत्रों में नहीं है। इस सूत्र को मनोयोग पूर्वक पढ़ लेने व समझ लेने से जैन संस्कृति की बहुत-सी अविज्ञात महत्वपूर्ण जानकारियाँ मिल जाती हैं। जम्बूद्वीप समस्त द्वीप-समुद्रों के बीच में बसा मध्यलोक का केन्द्र हमारा यह जम्बूद्वीप एक लाख योजन लम्बा और एक लाख योजन चौड़ा है। स्थानांग, समवायांग तथा भगवतीसूत्र में अनेक स्थलों पर जम्बूद्वीप का थोड़ा-थोड़ा वर्णन आता है। जैन परम्परा के अलावा वैदिक ग्रन्थों और बौद्ध ग्रन्थों में भी इस विशालद्वीप को जम्बूद्वीप के नाम से ही पहचाना गया है। श्रीमद् भागवत् के वर्णन अनुसार यह पृथ्वी सात द्वीपों में विभक्त है। जिनमें चौथे द्वीप का नाम जम्बूद्वीप है। यह गोलाकार तथा एक लाख (7) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002911
Book TitleAgam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni, Shreechand Surana
PublisherPadma Prakashan
Publication Year2006
Total Pages684
LanguageHindi, English
ClassificationBook_Devnagari, Book_English, Agam, Canon, Conduct, & agam_jambudwipapragnapti
File Size21 MB
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