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seven days. The rainfall shall be uniform and dropping as thick as the
es, rod or fist. Thus, it shall produce good colour, smell, juice and touch in the land of Bharat area which had earlier gone bad.
४८. [ ३ ] तंसि च णं खीरमेहंसि सत्तरतं णिवतितंसि समाणंसि इत्थ णं घयमेहे णामं महामेहे पाउन्भविस्सइ, भरहप्पमाणमेत्ते आयामेणं, तदणुरूवं च णं विक्खंभवाहल्लेणं। तए णं से घयमेहे महामेहे खिप्पामेव पतण-तणाइस्सइ जाव वासं वासिस्सइ, जेणं भरहस्स वासस्स भूमीए सिणेहभावं जणइस्सइ।
४८. [३] उस क्षीरमेघ के सात दिन-रात बरस जाने पर घृतमेघ नामक महामेघ प्रकट होगा। वह लम्बाई, चौड़ाई और विस्तार में भरत क्षेत्र जितना होगा। वह घृतमेघ नामक विशाल बादल शीघ्र ही गर्जन करेगा, वर्षा करेगा। इस प्रकार वह भरत क्षेत्र की भूमि में स्नेहभाव-स्निग्धता उत्पन्न करेगा। ___48. [3] After seven day rainfall of ksheer cloud, ghrit Megh (the cloud whose rain water shall be like, liquid butter) shall appear. Its length, breadth and expanse shall be equal to Bharat area. That cloud shall soon make a roaring sound and rain. Thus, it will create softness in the land of Bharat region.
४८. [ ४ ] तंसिं च णं घयमेहंसि सत्तरत्तं णिवतितंसि समाणंसि एत्थ णं अमयमेहे णामं महामेहे पाउन्भविस्सइ, भरहप्पमाणमित्तं आयामेणं जाव वासं वासिस्सइ। जेणं भरहेवासे रुक्ख-गुच्छ-गुम्मलय-वल्लि-तण-पबग-हरित-ओसहि-पवालंकुर-माईए तणवणस्सइकाइए जणइस्सइ।
४८.[४] उस घृतमेघ के सात दिन-रात तक बरस जाने पर अमृतमेघ नामक महामेघ प्रकट होगा। वह लम्बाई आदि में भरत क्षेत्र जितना होगा। एक जैसी सात दिन-रात वर्षा करेगा। इस प्रकार वह भरत क्षेत्र में वृक्ष, गुच्छ, गुल्म, लता, बेल, तृण-घास, पर्वग-गन्ने आदि, हरित-हरियाली-दूब आदि, औषधि-जड़ी-बूटी, पत्ते तथा कोंपल आदि बादर (२४ प्रकार की) वनस्पतियों को उत्पन्न करेगा।
48. [4] After seven day rainfall of ghrit Megh, amrit Megh (the cloud containing nectar) shall appear. Its length, breadth and expanse shall be equal to Bharat continent. It shall uniformally rain for seven days continuously. This rainfall shall produce trees, gulms, creepers, grass, greenery, herbs, leaves, petals and the like (24 types of vegetation).
४८. [५] तंसिं च णं अमयमेहंसि सत्तरत्तं णिवतितंसि समाणंसि एत्थ णं रसमेहे णामं महामेहे पाउन्भविस्सइ, भरहप्पमाणमेत्ते आयामेणं जाव सत्तरत्तं वासं वासिस्सइ।
जेणं तेसिं बहूणं रुक्ख-गुच्छ-गुम्म-लय-वल्लि-तण-पव्वग-हरित-ओसहि-पवालंकुर-मादीणं तेत्त-कडुअ-कसाय-अंबिल-महुरे पंचविहे रसविसेसे जणइस्सइ।
तए णं भरहे वासे भविस्सइ परूढ-रुक्ख-गुच्छ-गुम्म-लय-वल्लि-तण-पव्ययग-हरिअओसहिए, वचिय-तय-पत्त-पवालंकुर-पुप्फ-फलसमुइए, सुहोवभोगे आवि भविस्सइ। द्वितीय वक्षस्कार
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Second Chapter 955555
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