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5555555555555555555555555555555555558 ॐ सरसेणं गोसीसवरचंदणेणं अणुलिंपइ, अणुलिंपेत्ता हंसलक्खणं पडसाडयं णिअंसेइ, णिअंसेत्ता, 5 सव्वालंकारविभूसिअं करेति।
तए णं ते भवणवइ जाव वेमाणिआ गणहरसरीरगाइं अणगारसरीरगाइंपि खीरोदगेणं व्हावंति, + ण्हावेत्ता सरसेणं गोसीसवरचंदणेणं अणुलिपति, अणुलिंपेत्ता अहयाई दिव्वाइं देवदूसजुअलाइं णिसंति, णिअंसेत्ता सव्वालंकारविभूसिआई करेंति।
४३. [१] तब देवराज, देवेन्द्र शक्र ने बहुत से भवनपति, वाणव्यन्तर तथा ज्योतिष्क देवों से + कहा-“देवानुप्रियो ! नन्दनवन से शीघ्र स्निग्ध, उत्तम गोशीर्ष चन्दन-काष्ठ लाओ। लाकर तीन चिताओं ॥
की रचना करो-एक भगवान तीर्थंकर के लिए, एक गणधरों के लिए तथा एक बाकी के अनगारों के 卐 लिए।' तब वे भवनपति, (वाणव्यन्तर, ज्योतिष्क तथा) वैमानिक देव नन्दनवन से स्निग्ध, उत्तमम
गोशीर्ष चन्दन-काष्ठ लाये। लाकर चिताएँ बनाई-एक भगवान तीर्थंकर के लिए, एक गणधरों के लिए तथा एक बाकी के अनगारों के लिए।
तब देवराज शक्रेन्द्र ने आभियोगिक देवों को पुकारा। पुकारकर उन्हें कहा-देवानुप्रियो ! क्षीरोदक ॐ समुद्र से शीघ्र क्षीरोदक लाओ। वे आभियोगिक देव क्षीरोदक समुद्र से क्षीरोदक लाये। तत्पश्चात् देवराज
शक्रेन्द्र ने तीर्थंकर के शरीर को क्षीरोदक से स्नान कराया। स्नान कराकर सरस, उत्तम गोशीर्ष चन्दन
का लेपन किया। अनुलिप्त कर उसे हंस-सदृश श्वेत वस्त्र पहनाये। वस्त्र पहनाकर सब प्रकार के 卐 आभूषणों से विभूषित किया-सजाया।
फिर उन भवनपति, वैमानिक आदि देवों ने गणधरों के शरीरों को तथा साधुओं के शरीरों को क्षीरोदक से स्नान कराया। स्नान कराकर उन्हें स्निग्ध, उत्तम गोशीर्ष चन्दन से अनुलिप्त किया। अनुलिप्त ॥ कर दो दिव्य देवदूष्य-वस्त्र धारण कराये। वैसा कर सब प्रकार के अलंकारों से विभूषित किया।
43. [1] Thereafter, Shakrendra, the Lord of first heaven asked Bhavanapati, Vanvyantar and Jyotishk gods, “O beloved of gods ! Kindly i bring quickly best quality of sandalwood from Nandan forest and prepare three pyres-one for Tirthankar, one for Ganadhars and one for other monks.” Then Bhavanapati (Vanvyantar and Jyotishk) divine beings brought best quality of soft Sandalwood from Nandan forest. Thereafter, they prepared pyres-one for the Tirthankar, one for the Ganadhars and one for the remaining liberated monks.
Then Shakrendra called abhiyogik gods and ordered them to bring water from Ksheerodak ocean. The abhiyogik gods then brought ksheerodak (milky water) from Ksheer ocean. Thereafter, Shakrendra bathed the body of Tirthankar Rishabh with Ksheerodak, applied sandal paste of gosheersh sandalwood on it and covered it with white cloth-as white as a swan. | जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र
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Jambudweep Prajnapti Sutra
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