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४२. उस समय उत्तरार्ध लोकाधिपति, अट्ठाईस लाख विमानों के स्वामी, शूलपाणि-हाथ में शूल लिए हुए, वृषभवाहन-बैल पर सवार, निर्मल आकाश के रंग जैसा वस्त्र पहने हुए ईशानेन्द्र अपने विशाल देव-परिवार के साथ विपुल भोग भोगता हुआ रहता था।
ईशान (देवेन्द्र) का आसन चलित हुआ। ईशान देवेन्द्र ने अपना आसन चलित देखा। वैसा देखकर ॐ अवधिज्ञान का प्रयोग किया। प्रयोग कर भगवान तीर्थंकर को अवधिज्ञान द्वारा देखा। देखकर शक्रेन्द्र के
की ज्यों अपने देव-परिवार से संपरिवृत होकर (शक्रेन्द्र की भाँति) उपस्थित हुआ, यावत् पर्युपासना
करने लगा। उसी प्रकार सभी देवेन्द्र (-सनत्कुमार, माहेन्द्र, ब्रह्म, लांतक, महाशुक्र, सहस्रार, आनत, 卐 प्राणत, आरण, अच्युत देवलोकों के अधिपति-इन्द्र) अपने-अपने परिवार के साथ वहाँ आये। उसी फ़
प्रकार भवनवासियों के बीस इन्द्र, वाणव्यन्तरों के सोलह इन्द्र, ज्योतिष्कों के दो इन्द्र-सूर्य तथा चन्द्रमा । ॐ अपने-अपने देव-परिवारों के साथ वहाँ-अष्टापद पर्वत पर आये।
42. At that time in the northern half of the heaven, its ruler god Ishanendra was residing. He was the master of 28 lakh Vimaans. He had
a pointed weapon (Shoolapani) in his hand. He was riding the divine 4 bullock. His dress was that of the colour of the sky. He had a very large 4 family of divine beings and was enjoying divine pleasures.
The throne of Ishan god also trembled. When he saw it trembling, he fi applied his Awadhi Jnana and thereafter he also reached there with his
entire family in the same manner as Shakrendra had come. Similary all 45
the Indras of divine realms (rulers of Sanat Kumar, Maahendra, A Brahma, Lantak, Mahashukra, Sahasrar, Anat, Pranat, Aran, Achyut .
heaven) reached there with their respective families. Twenty Indras of u Bhuvanapati abodes, 16 Indras of Vyantar status and two Indras-sun and moon-of Jyotishk heaven also reached there at Ashtapad mountain
with their divine families. के शरीर संस्कार : चिता रचना ANOINTING OF BODY : ARRANGING THE PYRE
४३. [१] तए णं सक्के देविंदे, देवराया बहवे भवणवइ-वाणमंतर-जोइस-वेमाणिए देवे एवं वयासी-खिप्पामेव भो देवाणुप्पिआ ! णंदणवणाओ सरसाइं गोसीसवरचंदणकट्ठाइं साहरइ, साहरेत्ता तओम
चिइगाओ रएह-एगं भगवओ तित्थगरस्स, एगं गणधराणं, एवं अवसेसाणं अणगाराणं। तए णं ते ॐ भवणवइ (वाणमंतर-जोइसिअ) वेमाणिआ देवा णंदणवणाओ सरसाइं गोसीसवरचंदणकट्ठाई साहरंति,
साहरेत्ता तओ चिइगाओ रएंति, एगं भगवओ तित्थगरस्स, एगं गणहराणं, एगं अवसेसाणं अणगाराणं। म तए णं से सक्के देविंदे, देवराया आभिओगे देवे सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी-खिप्पामेव भो 5 # देवाणुप्पिया ! खीरोदगसमुद्दाओ खीरोदगं साहरह। तए णं ते आभिओगा देवा खीरोदगसमुद्दाओ । खीरोदगं साहरंति। तए णं से सक्के देविंदे, देवराया तित्थगरसरीरगं खीरोदगेणं ण्हाणेति, पहाणेत्ता 5 | द्वितीय वक्षस्कार
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Second Chapter 355555555)भएमएमएफ
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