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म चाँदी, सोना, उपकरण-अन्य सामान हैं, अथवा अन्य प्रकार से संक्षेप में जैसे ये मेरे सचित्त-द्विपद-दो
पैरों वाले प्राणी, अचित्त-स्वर्ण, चाँदी आदि निर्जीव पदार्थ, मिश्र-स्वर्णाभरण सहित द्विपद आदि हैंॐ इस प्रकार इनमें भगवान का प्रतिबन्ध-ममत्व भाव नहीं था। वे इनमें जरा भी बद्ध या आसक्त नहीं थे। + (२) क्षेत्र की अपेक्षा से ग्राम, नगर, अरण्य, खेत, खल-धान्य रखने, पकाने आदि का स्थान या ॐ खलिहान, घर, आँगन इत्यादि में उनका प्रतिबन्ध-आसक्ति भाव नहीं था।
(३) काल की अपेक्षा से स्तोक, लव, मुहूर्त, अहोरात्र, पक्ष, मास, ऋतु, अयन, संवत्सर या और ॐ भी दीर्घकाल सम्बन्धी कोई प्रतिबन्ध उन्हें नहीं था।
(४) भाव की अपेक्षा से क्रोध (मान, माया), लोभ, भय, हास्य से उनका कोई लगाव नहीं था।
भगवान ऋषभ-चातुर्मास के अतिरिक्त-शीतकाल के महीनों तथा ग्रीष्मकाल के महीनों के अन्तर्गत * गाँव में एक रात, नगर में पाँच रात प्रवास करते हए हास्य. शोक. रति, भय तथा परित्रास-आकस्मिक ॐ भय से वर्जित, ममतारहित, अहंकाररहित, लघुभूत-सतत ऊर्ध्वगामिता के प्रयत्न के कारण हल्के,
अग्रन्थ-बाह्य तथा आन्तरिक ग्रन्थि से रहित, बसूले द्वारा देह की चमड़ी छीले जाने पर भी वैसा करने
वाले के प्रति द्वेषरहित एवं किसी के द्वारा चन्दन का लेप किये जाने पर भी उस ओर अनुराग या + आसक्ति से रहित, पाषाण और स्वर्ण में एक समान भावयुक्त, इस लोक में और परलोक में
अप्रतिबद्ध-इस लोक के और देवभव के सुख में पिपासारहित जीवन और मरण की आकांक्षा से मुक्त, ॐ संसार को पार करने में समुद्यत, जीव-प्रदेशों के साथ चले आ रहे कर्म-सम्बन्ध को विच्छिन्न कर फ़ डालने में अभ्युत्थित-सप्रयत्न रहते हुए विहरणशील थे।
38. [1] Kaushalik Arhat Rishabh remained in clothed condition for more than a year. Thereafter, he became clotheless. Since the very day he adopted monkhood, he discarded all decorations of the physical body, attachment to the body and patiently endured all troubles and disturbances caused by men, sub-humans or celestial beings whether they were to lure him or to cause pain to him. He remained fearless. The sufferings faced were like beating by a rope made of skin of a tree, of a thin rod, or leather rope or cane thrashing. The other disturbances are when one bowed to him (honoured him considering that honour to him causes welfare good omen and helps in gaining knowledge). In case any one thus served him, he patiently endured it with a feeling of complete non-attachment and never felt elated or disturbed.
Bhagavan Rishabh was such a Shraman of highest order that he always followed the code of five Samitis namely carefulness in movement, in talking, in movement in search of food, in seeking alms, in picking up a pot, in placing a pot at a particular place, in discarding excreta, in blowing of the nose and the like. He was vigilant in mind,
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| जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र
(86)
Jambudveep Prajnapti Sutra
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