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37. [1] Arhat Rishabh was born of Nabhi Kulkar and his wife Marudevi in Kaushal state, he was destined to be the first king, the first Jina, the first Omniscient, the first Tirthankar, the first Chakravarti of Dharma who by his charity, chastity, austerity and attitude was capable of bringing an end to all the four passions and all the four states of worldly existence.
प्रव्रज्या : अभिनिष्क्रमण RENUNCIATION
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Rishabh of Kaushal state spent a period of 20 lakh purvas as 卐 youngster, crown prince and 63 lakh purvas as king. As a king he फ propagated 72 arts of men and 64 arts of women which included the art of writing, the art of recognising the language of the birds and the art of counting. For the welfare of his people, he also taught hundred types of industries and trade. Thereafter, he divided his kingdom into one hundred parts among his hundred sons and coronated them as kings of the respective kingdoms. Thus, he spent a total period of 83 lakh purvas as householder. (Detailed description of 72 arts of men may be seen in Raipaseniya Sutra.)
जय जय नंदा ! जय जय भद्दा ! धम्मेणं अभीए परीसहोवसग्गाणं, खंतिखमे भयभेरवाणं, धम्मे ते अविग्धं भवउत्ति कट्टु अभिनंदंति अ अभिधुणंति अ ।
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३७. [ २ ] वसित्ता जे से गिम्हाणं पढमे मासे पढमे पक्खे चित्तबहुले, तस्स णं चित्तबहुलस्स वमपक्खेणं दिवसस पच्छिमे भागे चइत्ता हिरण्णं, चइत्ता सुवण्णं, चइत्ता कोसं, कोट्ठागारं, चइत्ता बलं, 5 चइत्ता वाहणं, चइता पुरं, चइत्ता अंतेउरं, चइत्ता विउलधण - कणग - रयण-मणि - मोत्तिअसंसिलप्पवाल - रत्तरयणसंतसारसावइज्जं विच्छडियित्ता, विगोवइत्ता दायं दाइआणं परिभाएत्ता सुदंसणाए सीआए सदेवमणुआसुराए परिसाए समणुगम्ममाणमग्गे संखिअ - चक्किअ - गंगलिअ - मुहमंगलिअपूसमाणव - वद्धमाणा - आइक्खग - लंख - मंख - घंटिअगणेहिं ताहिं इट्ठाहिं, कंताहिं, पियाहिं, मणुण्णाहिं, 5 मणामाहिं, उरालाहिं, कल्लाणाहिं, सिवाहिं, धन्नाहिं, मंगल्लाहिं, सस्सिरिआहिं, हियगमणिजाहिं, हिययपल्हायणिज्जाहिं, कण्णमणणिव्वुइकराहिं, अपुणरुत्ताहिं, अट्ठसइआहिं वग्गूहिं अणवरयं अभिनंदंता फ्र अभिधुता य एवं वयासी
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३७. [ २ ] यों गृहस्थ-वास में रहकर ग्रीष्म ऋतु के प्रथम मास - चैत्र मास में, प्रथम पक्ष-कृष्ण पक्ष में, नवमी तिथि के उत्तरार्ध में - मध्याह्न के पश्चात् रजत, स्वर्ण, कोश- भाण्डागार, कोष्ठागार - धान्य के आगार, बल-चतुरंगिणी सेना, वाहन - हाथी, घोड़े, रथ आदि सवारियाँ, पुर-नगर, 卐 अन्तःपुर - रनवास, विपुल धन, स्वर्ण, रत्न, मणि, मोती, शंख, शिला-स्फटिक, राजपट्ट आदि, प्रवाल- मूँगे, रक्त रत्न - पद्मराग आदि लोक के सारभूत पदार्थों का परित्याग कर ये सब पदार्थ अस्थिर जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र
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Jambudveep Prajnapti Sutra
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