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36. The first five kulkaras namely-(1) Sumati, (2) Pratishruti, (3) Simankar, (4) Simandhar, and (5) Kshemankar award punishment of ‘Hakar' as criminal jurisprudence. The word 'Hakar' means – “Oh ! This has been done." Such a statement as punishment makes one to feel ashamed, deeply ashamed, extremely ashamed and creates in the accused a sense of fear and makes him quiet and humble.
The next five kulkaras namely-(6) Kshemandhar, (7) Vimalvahan, (8) Chakshushaman, ( 9 ) Yashasvan, and ( 10 ) Abhichandra award punishment of 'Makar' which means "Do not do it." Such a statement makes them feel deeply ashamed.
The last five kulkaras namely-(11) Chandrabh, (12) Prasenajit, (13) Marudev, ( 14 ) Nabhi, and ( 15 ) Rishabh award punishment of 'Dhikkar' which means-"You are condemned for such an act." Simply such a statement makes them feel deeply ashamed.
प्रथम तीर्थंकर भगवान ऋषभदेव गृहवास FIRST TIRTHANKAR RISHABHADEV DOMESTIC LIFE
३७. [ १ ] णाभिस्स णं कुलगरस्स मरुदेवाए भारिआए कुच्छिंसि एत्थ उस णामं अरहा कोसलिए पढमराया, पढमजिणे, पढमकेवली, पढमतित्थगरे, पढमधम्मवरचाउरंत - चक्कवट्टी समुप्पज्जित्था ।
तए णं उसमे अरहा कोसलिए वीसं पुव्वसयसहस्साइं कुमारवासमज्झे वसई, वसित्ता तेवट्ठि पुब्वसयसहस्साई महारायवासमज्झे वसइ । तेवट्ठि पुव्वसयसहस्साइं महारायवासमज्झे वसमाणे लेहाइआओ, गणि अप्पहाणाओ, सउणरुअ - पज्जवसाणाओ बावन्तरिं कलाओ चोसट्ठि महिलागुणे सिप्पसयं च कम्माणं तिणिवि पयाहिआए उवदिसइ । उवदिसित्ता पुत्तसयं रज्जसए अभिसिंचाइ । अभिसिंचित्ता तेसीइं पुब्वसयसहस्साइं महारायवासमज्झे वसइ ।
३७. [ १ ] नाभि कुलकर के, उनकी भार्या मरुदेवी की कोख से उस समय ऋषभ नामक अर्हत्, कौशलिक - कौशल देश में अवतीर्ण, प्रथम राजा, प्रथम जिन, प्रथम केवली, प्रथम तीर्थंकर, दान, शील, तप एवं भावना द्वारा चार गतियों या चारों कषायों का अन्त करने में सक्षम धर्म - साम्राज्य के प्रथम चक्रवर्ती उत्पन्न हुए।
कौशलिक अर्हत् ऋषभ ने बीस लाख 'पूर्व' कुमार - राजपुत्र - युवराज- अवस्था में व्यतीत किये। तिरेसठ लाख 'पूर्व' महाराजावस्था में रहते हुए उन्होंने लेखन से लेकर पक्षियों की बोली की पहचान तक गणित - प्रमुख कलाओं का, जिनमें पुरुषों की बहत्तर कलाओं, स्त्रियों के चौंसठ गुणों-कलाओं तथा सौ प्रकार कार्मिक शिल्प-विज्ञान का समावेश है, प्रजा के हित के लिए उपदेश किया। कलाएँ आदि उपदिष्ट कर अपने सौ पुत्रों को सौ राज्यों में पृथक्-पृथक् राज्य दिये । उनका राज्याभिषेक कर वे तिरासी लाख 'पूर्व' (कुमारकाल के बीस लाख पूर्व तथा महाराज काल के तिरेसठ लाख पूर्व) गृहस्थवास में रहे। (बहत्तर पुरुष कला का वर्णन रायपसेणिय सूत्रानुसार समझें ।)
द्वितीय वक्षस्कार
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Second Chapter
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