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________________ 25 55 55 5 5 5 5 5 5 5555 5 55 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 7 7 5 5 5 5 5552 फ्र *த*ததத****************************** फ विमलवाहणे ७, चक्खुमं ८, जसमं ९, अभिचंदे १०, चंदाभे ११, पसेणई १२, मरुदेवे १३, णाभी 卐 फ्र १४, उसमे १५, त्ति । 卐 (१४) नाभि, (१५) ऋषभ । 卐 ३५. उस आरक के अन्तिम तीसरे भाग के समाप्त होने में जब एक पल्योपम का आठवाँ भाग फ्र अवशेष रहता है तो ये पन्द्रह कुलकर - विशिष्ट बुद्धिशाली पुरुष उत्पन्न होते हैं - (१) (२) प्रतिश्रुति, (३) सीमंकर, (४) सीमन्धर, (५) क्षेमंकर, (६) क्षेमंधर, (७) सुमति, विमलवाहन, 卐 35. When only one-eighth of a palyopam is there for the end 5 of the last third part of this aeon, fifteen kulakaras take birth. They are highly intelligent. Their names are as follows (1) Sumati, 5 (2) Pratishruti, ( 3 ) Simankar, (4) Simandhar, ( 5 ) Kshemankar, 5 (6) Kshemandhar, ( 7 ) Vimalvahan, (8) Chakshushaman, (9) Yashasvan, 5 (10) Abhichandra, ( 11 ) Chandrabh, ( 12 ) Prasenajit, (13) Marudev, (14) Nabhi, (15) Rishabh. तत्थ णं चंदाभ ११, पसेणइ १२, मरुदेव १३, णाभि १४, उसभाणं १५ - एतेसि णं पंचहं 5 कुलगराणं धिक्कारे णामं दंडणीई होत्था । ते णं मणुआ धिक्कारेणं दंडेणं हया समाणा जाव चिट्ठति । ३६. उन पन्द्रह कुलकरों में से (१) सुमति, (२) प्रतिश्रुति, (३) सीमंकर, (४) सीमन्धर, तथा (५) क्षेमंकर - इन पाँच कुलकरों की 'हकार' नामक दंडनीति होती है। वे (उस समय के) मनुष्य 'हकार' - 'हा, यह क्या किया" इतने कथन मात्र रूप दंड से अभिहत होकर लज्जित, विलज्जित - विशेष रूप से लज्जित, व्यर्द्ध- अतिश लज्जित, भीतियुक्त, तूष्णीक - चुप तथा विनयावनत हो जाते हैं। (८) चक्षुष्मान्, (९) यशस्वान, (१०) अभिचन्द्र, (११) चन्द्राभ, (१२) प्रसेनजित्, (१३) मरुदेव, 5 उनमें से (६) क्षेमंधर, (७) विमलवाहन, (८) चक्षुष्मान्, (९) यशस्वान, तथा (१०) अभिचन्द्रइन पाँच कुलकरों की 'मकार' नामक दण्डनीति होती है। वे (उस समय के) मनुष्य 'मकार' - 'मा कुरु' - "ऐसा मत करो" - इस कथन रूप दण्ड से अभिहत होकर लज्जित हो जाते हैं। उनमें से (११) चन्द्राभ, (१२) प्रसेनजित्, (१३) मरुदेव, (१४) नाभि, तथा (१५) ऋषभ - इन पाँच कुलकरों की 'धिक्कार' नामक नीति होती है। वे (उस समय के) मनुष्य 'धिक्कार' - "इस कर्म 5 के लिए तुम्हें धिक्कार है", इतने कथन मात्र रूप दण्ड से अभिहत होकर लज्जित हो जाते हैं। (78) * 5 5 55 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 55 55 55 59595959 59 5955 5 5 5 5 5 595959595952 जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र 卐 卐 ३६. तत्थ णं सुमई १, पडिस्सुई २, सीमंकरे ३, सीमंधरे ४, खेमंकरे ५ - णं एतेसिं पंचण्डं 5 कुलगराणं हक्कारे णामं दंडणीई होत्था । ते णं मणुआ हक्कारेणं दंडेणं हया समाणा लज्जिआ, फ विलज्जिआ, वेड्डा, भीआ, तुसिणीआ, विणओणया चिट्ठति । फ्र तत्थ णं खेमंधर ६, विमलवाहण ७, चक्खुमं ८, जसमं ९, अभिचंदाणं १० - एतेसिं पंचन्हं 5 कुलगराणं मक्कारे णामं दंडणीई होत्था । ते णं मणुआ मक्कारेणं दंडेणं हया समाणा (जाव) चिट्ठति । Jain Education International 卐 For Private & Personal Use Only फ Jambudveep Prajnapti Sutra 卐 www.jainelibrary.org
SR No.002911
Book TitleAgam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni, Shreechand Surana
PublisherPadma Prakashan
Publication Year2006
Total Pages684
LanguageHindi, English
ClassificationBook_Devnagari, Book_English, Agam, Canon, Conduct, & agam_jambudwipapragnapti
File Size21 MB
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