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0555555555 ) )) )))) ) ) )))4958 ॐ [उ. ] गोयमा ! बहुसमरमणिज्जे भूमिभागे होत्था, सो चेव गमो अव्वो णाणत्तं दो धणुसहस्साई उड़े
उच्चत्तेणं। तेसिं च मणुआणं चउसटिपिट्ठकरंडगा, चउत्थभत्तस्स आहारत्थे समुष्पज्जइ, ठिई पलिओवमं,
एगूणासीइं राइंदिआई सारक्खंति, संगोवेंति, जाव देवलोगपरिग्गहिआ णं ते मणुआ पण्णत्ता समणाउसो ! .. [प्र. ] तीसे णं भंते ! समाए पच्छिमे तिभाए भरहस्स वासस्स केरिसए आयारभावपडोयारे होत्था ?
[उ. ] गोयमा ! बहुसमरमणिज्जे भूमिभागे होत्था, से जहाणामए आलिंगपुक्खरेइ वा जाव मणीहिं उवसोभिए, तं जहा-कित्तिमेहिं चेव अकित्तिमेहिं चेव।
[प्र.] तीसे णं भंते ! समाए पच्छिमे तिभागे भरहे वासे मणुआणं केरिसए आयारभावपडोआरे होत्था ?
[उ. ] गोयमा ! तेसिं मणुआणं छबिहे संघयणे, छबिहे संठाणे, बहूणि धणुसयाणि उड्ढे उच्चत्तेणं, है जहण्णेणं संखिज्जाणि वासाणि, उक्कोसेणं असंखिज्जाणि वासाणि आउअं पालंति, पालित्ता अप्पेगइया ॐ णिरयगामी, अप्पेगइया तिरिअगामी, अप्पेगइया मणुस्सगामी, अप्पेगइया देवगामी, अप्पेगइया सिझंति,
सव्वदुक्खाणमंतं करेंति। ___३४. आयुष्मन् श्रमण गौतम ! उस द्वितीय आरक का तीन सागरोपम कोडाकोडी काल व्यतीत हो
जाता है, तब अवसर्पिणी काल का सुषम-दुःषमा नामक तृतीय आरक प्रारम्भ होता है। उसमें अनन्त ॐ वर्ण-पर्याय, (अनन्त गंध-पर्याय, यावत् सूत्र ३३ अनुसार आदि का अनन्त उत्थान-कर्म बल-वीर्य
पुरुषकार-पराक्रम-पर्याय)-इनका अनन्त गुण परिहानि–क्रम से ह्रास होता जाता है। उस आरक
को तीन भागों में विभक्त किया गया है-(१) प्रथम त्रिभाग, (२) मध्यम त्रिभाग, (३) पश्चिम त्रिभागॐ अन्तिम त्रिभाग।
[प्र.] भगवन् ! जम्बूद्वीप में इस अवसर्पिणी के सुषम-दुःषमा आरक के प्रथम तथा मध्यम त्रिभाग ॐ का आकार स्वरूप कैसा है ? 1 [उ.] आयुष्मन् श्रमण गौतम ! उस समय का भूमिभाग बहुत समतल और रमणीय होता है। उसका ॐ पूर्ववत् वर्णन जानना चाहिए। अन्तर इतना है-उस समय के मनुष्यों के शरीर की ऊँचाई दो हजार धनुष फ़ होती है। उनकी पसलियों की हड्डियाँ चौंसठ होती हैं। एक दिन के बाद उनमें आहार की इच्छा उत्पन्न होती
है। उनका आयुष्य एक पल्योपम का होता है, ७९ रात-दिन अपने यौगलिक शिशुओं की वे सार-सम्हाल म करते हैं, यावत् काल-धर्म को प्राप्त होकर-मरकर स्वर्ग में उत्पन्न होते हैं। उन मनुष्यों का जन्म स्वर्ग में ही
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म होता है।
[प्र.] भगवन् ! उस आरक के पश्चिम विभाग में आखिरी तीसरे हिस्से में भरत क्षेत्र का आकार स्वरूप कैसा होता है ? ॐ [उ. ] गौतम ! उसका भूमिभाग बहुत समतल तथा रमणीय होता है। यह मुरज के ऊपरी भाग + जैसा समतल होता है। यह यावत् कृत्रिम एवं अकृत्रिम मणियों से उपशोभित होता है। - [प्र.] भगवन् ! उस आरक के अन्तिम तीसरे भाग में भरत क्षेत्र में मनुष्यों का आकार/स्वरूप म कैसा होता है?
जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र
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Jambudveep Prajnapti Sutra
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