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म [प्र.] भगवन् ! जम्बूद्वीप के अन्तर्गत इस अवसर्पिणी के सुषमा नामक आरक में उत्कृष्टता की पराकाष्ठा प्राप्त समय में भरत क्षेत्र का कैसा आकार/स्वरूप होता है ?
[उ.] गौतम ! उसका भूमिभाग बहुत समतल और रमणीय होता है। मुरज के ऊपरी भाग जैसा समतल होता है। सुषम-सुषमा के वर्णन में जो कथन किया गया है, वैसा ही यहाँ जानना चाहिए। उससे ॐ इतना अन्तर है-उस काल के मनुष्य चार हजार धनुष की अवगाहना वाले होते हैं, उनके शरीर की ऊ + ऊँचाई दो कोस होती है। उनकी पसलियों की हड्डियाँ एक सौ अट्ठाईस होती हैं। दो दिन बीतने पर उन्हें 5
भोजन की इच्छा होती है। वे अपने यौगलिक बच्चों का चौंसठ दिन तक पालन-पोषण करते हैं, उनकी म आयु दो पल्योपम की होती है। शेष सब जैसा पहले वर्णन आया है, उसी प्रकार है। उस समय चार
प्रकार के मनुष्य होते हैं-(१) प्रवर-श्रेष्ठ, (२) प्रचुरजंघ-पुष्ट जंघा वाले, (३) कुसुम-पुष्प के सदृश है ॐ सुकुमार, (४) सुशमन-अत्यन्त शान्त।
33. When 4 x 10 million x 10 million Sagar time period of the first aeon has passed, the second aeon of Avasarpani time-cycle namely Sukhama aeon starts. At that time there is short fall in colour, smell, taste, touch, body structure, figure, height, life-span, aguru-laghu, strength and courage to a great extent gradually.
[Q] Reverend Sir ! When Sukhama the second aeon of Avasarpani 5 time-cycle is at its climax in Bharat area, what is the nature of the land area ?
(Ans.) Gautam ! The land is well levelled and attractive like the upper surface of a drum. The description may be considered the same as earlier mentioned in case of Sukhama-Sukhama aeon. The only difference is that the height of human beings is 4,000 dhanush. They have 128 rib-bones. They have desire for food after two days. They look after their twin children for 64 days. Their life-span is two palyopam. The remaining description is exactly the same as of first aeon. The human beings at that time are of four types—(1) noble, (2) with strong things, (3) delicate like a flower, and (4) extremely quiet.
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(३) सुषमा-दुःषमा SUKHAMA-DUKHAMA ॐ ३४. तीसे णं समाएतिहिं सागरोवमकोडाकोडीहिं काले वीइक्कंते अणंतेहिं वण्णपज्जवेहिं, जाव है अणंतगुणपरिहाणीए परिहायमाणो २, एत्थ णं सुसम-दुस्समाणामं समा पडिवज्जिंसु। समणाउसो ! सा णं
समा तिहा विभज्जइ तं जहा-पढमे तिभाए १, मज्झिमे तिभाए २, पच्छिमे तिभाए ३। 4 [प्र.] जंबुद्दीवे णं भंते ! दीवे, इमीसे ओसप्पिणीए सुसम-दुस्समाए समाए पढममज्झिमेसु तिभाएसु के भरहस्स वासस्स केरिसए आयारभावपडोयारे ? पुच्छा।
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द्वितीय वक्षस्कार
(76)
Second Chapter
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