________________
卐
फ्र
தத்திததமி**************************55
३२. [ प्र. ६ ] तीसे णं भंते ! समाए भारहे वासे कइविहा मणुस्सा अणुसज्जित्था ?
[उ. ] गोयमा ! छव्विहा पण्णत्ता, तं जहा - पम्हगंधा १, मिअगंधा २, अममा ३, सहा ५, सणिचारी ६ ।
३२. [ प्र. ६ ] भगवन् ! उस समय भरत क्षेत्र में कितने प्रकार के मनुष्य होते हैं ? [उ.] गौतम ! छह प्रकार के मनुष्य होते हैं - ( 9 )
पद्मगन्ध - कमल के समान गंध वाले,
(२) मृगगंध - कस्तूरी सदृश गंध वाले, (३) ममत्वरहित, (४) तेजस्वी, (५) सहनशील, तथा 5 (६) शनैश्चारी - उत्सुकता न होने से धीरे-धीरे चलने वाले ।
卐
32. [Q. 6] Reverend Sir ! How many types of human beings are in 5 Bharat area at that time?
(२) सुषमा आरक SUKHAMA AEON
३३. तीसे णं समाए चउहिं सागरोवम कोडाकोडीहिं काले वीइक्कंते अनंतेहिं वण्णपज्जवेहिं, जाव अणंतेहिं गंधपज्जवेर्हि, अनंतेहिं रसपज्जवेहिं, अनंतेहिं फासपज्जवेहिं, अणंतेहिं संघयणपज्जवेहिं, अणंतेहिं संठाणपज्जवेहिं, अणंतेहिं उच्चत्तपज्जवेहिं, अनंतेहिं आउपज्जवेहिं, अणंतेहिं गुरुलहुपज्जवेहिं, अणतेहिं अगुरुलहुपज्जवेहिं, अनंतेहिं उट्ठाण - कम्म-बल-वीरिअ - पुरिसक्कार - परक्कम - पज्जवेहिं, अनंतगुणपरिहाणीए परिहायमाणे परिहायमाणे एत्थ णं सुसमा णामं समाकाले पडिवज्जिंसु समणाउसो !
[प्र.] जंबुद्दीवे णं भंते ! दीवे इमीसे ओसप्पिणीए सुसमाए समाए उत्तम कट्ठपत्ताए भरहस्स वासस्स केरिस आयारभाव पडोयारे होत्था ?
अतली ४,
[Ans.] The human beings at that time are of six types (1) those who 5 emit lotus smell, (2) those who emit musk fragrance, (3) those who have no attachment, ( 4 ) bright, ( 5 ) forbearing, (6) those who move about 5 slowly as they are free from any curiosity.
जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र
फ्र
Jain Education International
फफफफफफफफफफफफफ्र
(74)
卐
For Private & Personal Use Only
卐
[उ. ] गोयमा ! बहुसमरमणिज्जे भूमिभागे होत्था, से जहाणामए आलिंगपुक्खरेइ वा तं चैव जं 卐 सुसम - सुसमाए पुव्ववण्णिअं णवरं णाणत्तं चउधणुसहस्समूसिआ, एगे अट्ठावीसे पिट्ठकरंडकसए, छट्टभत्तस्स आहारट्ठे, चउसट्ठि राइंदिआई सारक्खंति, दो पलिओवमाई आऊ सेसं तं चेव । तीसे णं समाए चहा मस्सा अणुसज्जित्था, तं जहा - एका १, पउरजंघा २, कुसुमा ३, सुसमणा ४ ।
Jambudveep Prajnapti Sutra
३३. उस समय के प्रथम आरक का जब चार सागर कोडाकोडी काल व्यतीत हो जाता है, तब अवसर्पिणी काल का सुषमा नामक द्वितीय आरक प्रारम्भ हो जाता है। उसमें अनन्त वर्ण - पर्याय, अनन्त फ्र गंध- पर्याय, अनन्त रस - पर्याय, अनन्त स्पर्श - पर्याय, अनन्त संहनन - पर्याय, अनन्त संस्थान - पर्याय, अनन्त उच्चत्व-पर्याय, अनन्त आयु-पर्याय, अनन्त गुरु-लघु-पर्याय, अनन्त अगुरु - लघु-पर्याय, अनन्त उत्थान - कर्म-बल-वीर्य - पुरुषाकार - पराक्रम- पर्याय इनका अनन्तगुण परिहानि - क्रम ह्रास होता जाता है।
卐
卐
卐
卐
फ्र
5
5
卐
卐
www.jainelibrary.org