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ॐ ३१. [प्र. ३] भगवन् ! क्या उस समय भरत क्षेत्र में असि-तलवार के आधार पर +जीविका-युद्धकला, मसि-लेखन या कलम के आधार पर जीविका-लेखन कला, कृषि-खेती, वणिक्- कला-विक्रय के आधार पर चलने वाली जीविका, पण्य-क्रय-विक्रय-कला तथा वाणिज्य-व्यापारॐ कला होती है ?
[उ. ] गौतम ! ऐसा नहीं होता। वे मनुष्य असि, मसि, कृषि, वणिक्, पणित तथा वाणिज्य-कला के प्रधान जीविका से रहित होते हैं।
31.[Q.3] Reverend Sir! Do the residents of that time in Bharat area earn their livelihood on the basis of the power of the sword, writing power, agriculture, trade or business talent ?
[Ans.] Gautam ! It is not so. Those human beings are ignorant of the art of sword, writing, agriculture, trade and commerce and the like. 卐 ३१. [प्र. ४ ] अस्थि णं भंते ! तीसे समाए भरहे वासे हिरण्णेइ वा, सुवण्णेइ वा, कंसेइ वा, दूसेइ
वा, मणि-मोत्तिय-संख-सिलप्पवालरत्तरयणसावइज्जेइ वा ? म [उ. ] हंता अत्थि, णो चेव णं तेसिं मणुआणं परिभोगत्ताए हव्वमागच्छइ। म ३१. [प्र. ४ ] भगवन् ! क्या उस समय भरत क्षेत्र में चाँदी, सोना, काँसी, वस्त्र, मणियाँ, मोती,
शंख, शिला-स्फटिक, रक्तरत्न-पदमराग-पुखराज-ये सब होते हैं ? ॐ [उ. ] हाँ, गौतम ! ये सब होते हैं, किन्तु उन मनुष्यों के परिभोग में-उपयोग में नहीं आते।
31. [Q. 4] Reverend Sir ! Do the articles like silver, gold, bronze, clothes, beads, pearls, conch-shell, crystal-quartz, ruby and yellow
sapphire exist in Bharat area at that time? म [Ans.] Gautam ! All these articles do exist, but those human beings do
not make use of them. + ३१. [प्र. ५ ] अस्थि णं भंते ! तीसे समाए भरहे वासे रायाइ वा, जुवरायाइ वा, ईसर-तलवर
माइंबिअ-कोडुंबिअ-इन्भ-सेटि-सेणावइ-सत्थवाहाइ वा ? म [उ. ] गोयमा ! णो इणढे समठे। ववगयइडिसक्कारा णं ते मणुआ पण्णत्ता। 3 ३१. [प्र. ५ ] भगवन् ! क्या उस समय भरत क्षेत्र में राजा, युवराज, ईश्वर-ऐश्वर्यशाली एवं के प्रभावशाली पुरुष, तलवर-सन्तुष्ट राजा द्वारा प्रदत्त-स्वर्णपट्ट से अलंकृत-राजसम्मानित विशिष्ट के 1 नागरिक, माइंबिक-जागीरदार-भूस्वामी, कौटुम्बिक-बड़े परिवारों के प्रमुख, इभ्य-जिनकी अधिकृत 5 ॐ वैभव-राशि के पीछे हाथी भी छिप जाये, इतने विशाल वैभव के स्वामी, श्रेष्ठी-सम्पत्ति और सुव्यवहार म से प्रतिष्ठा प्राप्त सेठ, सेनापति-राजा की चतुरंगिणी सेना के अधिकारी, सार्थवाह-देशान्तर में व्यवसाय
करने वाले समर्थ व्यापारी होते हैं ? म [उ. ] गौतम ! ऐसा नहीं होता। वे मनुष्य ऋद्धि-वैभव तथा सत्कार आदि से निरपेक्ष होते हैं।
| जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र
(62)
Jambudveep Prajnapti Sutra
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