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[Ans.] Blessed Gautam ! Those human beings live in tree-shaped houses.
[Q.] Reverend Sir ! What is the shape of those trees ?
[Ans.] Gautam ! Those trees are of different shape namely those
tree tops, dancing hall, umbrella, platform, arch, gate of city, vedika, verandah, palatial mansion, grand buildings, balcony, lake palace and Vallabhi house.
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There are many other trees in this Bharat area whose shape is similar to grand buildings, which provide joyous cool shade.
३१. [ प्र. १ ] अत्थि णं भंते ! तीसे समाए भरहे वासे गेहाइ वा गेहावणाइ वा ?
[ उ. ] गोयमा ! णो इणट्ठे समट्ठे, रुक्ख-गेहालया णं ते मणुआ पण्णत्ता समणाउसो !
३१. [ प्र. १ ] भगवन् ! उस समय भरत क्षेत्र में क्या गेह - घर होते हैं ? क्या गेहापण - गृहयुक्त आपण दुकानें या बाजार होते हैं ?
[ उ. ] आयुष्मन् श्रमण गौतम ! ऐसा नहीं होता। उन मनुष्यों के वृक्ष ही घर होते हैं।
31. [Q. 1] Reverend Sir ! Were there houses in Bharat area at that time? Were there shops and bazaars ?
[Ans.] Blessed Gautam ! It is not so. The trees were the only abodes of those human beings.
३१. [ प्र. २] अत्थि णं भंते! तीसे समाए भरहे वासे गामाइ वा, जाव संणिवेसाइ वा । [उ. ] गोयमा ! णो इणट्ठे समट्ठे, जहिच्छिअ- कामगामिणो णं ते मणुआ पण्णत्ता ।
३१. [ प्र. २ ] भगवन् ! क्या उस समय भरत क्षेत्र में ग्राम - बाड़ों से घिरी बस्तियाँ नगर यावत् नगर सन्निवेश- सार्थ-व्यापारार्थ यात्राशील सार्थवाह एवं उनके सहवर्ती लोगों के ठहरने के स्थान होते हैं ? [उ. ] गौतम ! ऐसा नहीं होता। वे मनुष्य स्वभावतः स्वेच्छानुरूप विविध स्थानों में गमनशील होते हैं। 31. [Q. 2] Reverend Sir ! At that time in Bharat area were there colonies, towns up to cities where trading community, travellers or their companies could stay?
[Ans.] Gautam ! It is not so. Those human beings move about in different places as they desire.
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३१. [प्र. ३ ] अत्थि णं भंते ! तीसे समाए भरहे वासे असीइ वा, मसीइ वा, किसीइ वा, वणिएत्ति वा, पणिएत्ति वा, वाणिज्जेइ वा ?
द्वितीय वक्षस्कार
[उ. ] णो इणट्ठे समट्ठे, ववगय - असि - मसि - किसि - वणिअ - पणिअ - वाणिज्जा णं ते मणुआ पण्णत्ता समणाउसो !
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Second Chapter
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