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गति एवं प्रतिष्ठास्वरूप, प्रतिघात, बाधा या आवरणरहित उत्तम ज्ञान, दर्शन के धारक, व्यावृत्तछद्मा-अज्ञान आदि आवरण रूप छद्म से निवृत्त, जिन-राग के जेता, ज्ञायक-समस्त भावों के ज्ञाता, तीर्ण-संसार-सागर को पार कर जाने वाले, तारक-संसार-सागर से पार उतारने वाले, बुद्ध-बोध प्राप्त किये हुए, बोधक-औरों के लिए बोधप्रद, सर्वज्ञ, सर्वदर्शी, शिव-कल्याणमय, अचल-स्थिर, निरुपद्रव, अन्तरहित, क्षयरहित, बाधारहित, अपुनरावर्तन-जहाँ से फिर जन्म-मरण रूप संसार में आगमन नहीं होता, ऐसी सिद्धगति को प्राप्त सिद्धों को नमस्कार हो। __ आदिकर, तीर्थंकर, सिद्धावस्था पाने के लिए प्रयत्नशील, मेरे धर्माचार्य, धर्मोपदेशक श्रमण भगवान महावीर को मेरा नमस्कार हो। ____ मैं यहाँ अपने स्थान पर रहा हुआ वहाँ स्थित-(चम्पा के उपनगर में ठहरे हुए) भगवान 2 को वन्दन करता हूँ। वहाँ स्थित भगवान अपने ज्ञान से यहाँ स्थित मुझको देखते हैं।'
इस प्रकार राजा कोणिक भगवान को वन्दन नमस्कार कर पूर्व की ओर मुँह किये अपने सिंहासन पर बैठा। (बैठकर) सन्देश देने वाले वार्ता-निवेदक को एक लाख आठ हजार * रजत मुद्राएँ प्रीतिदान स्वरूप पारितोषिक के रूप में दीं। उत्तम वस्त्र आदि द्वारा उसका * सत्कार किया, आदरपूर्ण वचनों से सम्मान किया। फिर राजा ने इस प्रकार कहाREMOTE PRAYER
20. “I bow and convey my reverence to the worthy ones (Arihantanam), the supreme ones (bhagavantanam), the first propounders or originators of the shrut dharma (Jainism) (aaigaranam or aadikaranam); the religious ford-makers or founders of the four-fold religious order (Titthagaranam or Tirthankaranam); the self-enlightened ones (sahasambuddhanam or svayam-sambuddhanam). My veneration is to those who are supreme among men (purisuttamanam or purushottamanam); lions among men because of their spiritual valour (purisasihanam or purush-simhanam); unspoiled among men like a white lotus (purisavar-pundariyanam or purushvar-pundareekanam); glorious elephants among men (purisavargandhahatthinam or purush-vargandhahastinam). My veneration is to those who are eminent among all beings in the lok, or the occupied space, or all the worlds (loguttamanam or lokottamanam), masters of all the worthy beings
of all the worlds (loganahanam or lokanathanam), benefactors of all * औपपातिकसूत्र
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Aupapatik Sutra
62-800:00280
S
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