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________________ and armlets. Joining his palms and waving the joined palms around his head, he uttered— भगवान को परोक्ष वन्दना २०. णमोऽत्थु णं अरिहंताणं, भगवंताणं, आइगराणं, तित्थगराणं, सयंसंबुद्धाणं, पुरिसुत्तमाणं, पुरिससीहाणं, पुरिसवरपुंडरीयाणं पुरिसवरगंधहत्थीणं, लोगुत्तमाणं लोगनाहाणं, लोगहियाणं लोगपईवाणं, लोगपज्जोयगराणं, अभयदयाणं, चक्खुदयाणं, मग्गदयाणं, सरणदयाणं, जीवदयाणं, बोहिदयाणं, धम्मदयाणं, धम्मदेसयाणं, धम्मनायगाणं, धम्मसारहीणं, धम्मवरचाउरंतचक्कवट्टीणं, दीवो, ताणं, सरणं, गई, पइट्ठा, अप्पडिहय - वरनाणदंसणधराणं, विअट्टछउमाणं, जिणाणं, जावयाणं, तिण्णाणं, तारयाणं, बुद्धाणं, बोहयाणं, मुत्ताणं, मोयगाणं, सव्वण्णूणं, सव्वदरिसीणं, सिव-मयलमरुयमणंतमक्खय- मव्वाबाह - मपुणरावत्तगं, सिद्धिगणामधेज्जं ठाणं संपत्ताणं । नमोऽत्थु णं समणस्स भगवओ महावीरस्स, आदिगरस्स, तित्थगरस्स जाव संपाविउकामस्स, मम धम्मायरियस्स धम्मोवदेसगस्स । वंदामि णं भगवंतं तत्थगयं इहगए, पासउ मे भगवं तत्थगए इहगयं ति कट्टु वंदइ णमंसइ । वंदित्ता णमंसित्ता सीहासणवरगए, पुरत्थाभिमुहे निसीयइ, निसीइत्ता तस्स पवित्तिवाउयस्स अट्टुत्तरं सयसहस्सं पीइदाणं दलयइ, दलइत्ता सक्कारेइ, सम्माणेइ, सक्कारित्ता, सम्माणित्ता एवं वयासी २०. “अरिहंतों को नमस्कार है । आदिकर - तीर्थंकर, स्वयंसंबुद्ध, पुरुषोत्तम, पुरुषसिंह, पुरुषवरपुण्डरीक, पुरुषवर - गन्धहस्ती - - उत्तम गन्धहस्ती के समान भगवान को नमस्कार है। लोकोत्तम - लोक के सभी प्राणियों में उत्तम, लोकनाथ - लोक के सभी भव्य प्राणियों के स्वामी, लोकहितकर - लोक का कल्याण करने वाले, लोकप्रदीप - ज्ञानरूपी दीपक द्वारा लोक का अज्ञान दूर करने वाले, लोकप्रद्योतकर-लोक में धर्म का उद्योत फैलाने वाले, अभयदायक, चक्षुदायक - आन्तरिक नेत्रदाता - सद्ज्ञान देने वाले, मार्गदायक - शरणदायक- जीवनदायकआध्यात्मिक जीवन के संबल, बोधिदायक - सम्यक् बोध देने वाले, धर्मदायक - सम्यक् चारित्र रूप धर्म के दाता, धर्मदेशक - धर्मदेशना देने वाले, धर्मनायक, धर्मसारथि - धर्मरूपी रथ के चालक, धर्मवरचातुरन्त चक्रवर्ती - चारों गतियों में धार्मिक जगत् के चक्रवर्ती, दीपक सदृश अथवा द्वीप - संसार-समुद्र में द्वीप के समान, त्राण - भव्य प्राणियों के रक्षक, शरण-आश्रय समवसरण अधिकार Jain Education International (47) For Private & Personal Use Only Samavasaran Adhikar www.jainelibrary.org
SR No.002910
Book TitleAgam 12 Upang 01 Aupapatik Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni, Shreechand Surana
PublisherPadma Prakashan
Publication Year2003
Total Pages440
LanguageHindi, English
ClassificationBook_Devnagari, Book_English, Agam, Canon, Conduct, & agam_aupapatik
File Size16 MB
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