________________
*
ROLARODARODARO9ROPROPARDAR
*
*
PAROORPxo
nobles; knights of honour (talavar or pattadhari); landlords * ** (madambiya or jamindar); heads of prominent families and village
heads (kodumbiya or chowdhary); ministers (manti or mantri); chief ministers (mahamanti or mahamantri); astrologers (ganaga or ganak); gatekeepers or guards (dovariya); counselors heading * eighteen different sections (amachch or amatya); attendants and
servants (ched or sevak); bodyguards who are always at the back of ** the king (peedhamadda or peethmard or pariparshvik); citizens
(nagarnigam or nagarik); merchants, specially those who wore
golden headband marked with the sign of Lakshmi, the goddess of * wealth (setthi or shreshthi); commander of the armed forces
including the four sections of chariot, elephant, horse and footsoldiers (senavai or senapati); caravan chiefs (satthavaha or saarthavah); emissaries and ambassadors (duya or doot); and border guards and diplomats (sandhival or sandhipal). भगवान महावीर
१६. (क) तेणं कालेणं तेणं समएणं समणे भगवं महावीरे आइगरे, तित्थगरे, * सहसंबुद्धे, पुरिसुत्तमे, पुरिससीहे, पुरिसवरपुंडरीए, पुरिसवरगंधहत्थी, अभयदए,
चक्खुदए, मग्गदए, सरणदए, जीवदए, दीवो, ताणं, सरणं, गई, पइट्ठा, धम्मवरचाउरंतचक्कवट्टी, अप्पडिहयवरनाणदंसणधरे, विअच्छउमे, जिणे, जाणए, तिण्णे, तारए, मुत्ते, मोयए, बुद्धे, बोहये, सवण्णू, सव्वदरिसी, सिवमयलमरुयमंणतमक्खय-मव्वाबाह-मपुणरावत्त सिद्धिगइणामधेनं ठाणं संपाविउकामे, अरहा; जिणे, केवली।
१६. (क) उस समय श्रमण भगवान महावीर आदिकर-अपने युग में धर्म के आदि * प्रवर्त्तक, तीर्थंकर-चतुर्विध धर्मतीर्थ-के प्रतिष्ठापक, स्वयं-संबुद्ध, पुरुषोत्तम-पुरुषों में
उत्तम, पुरुषसिंह-आत्म-शौर्य में पुरुषों में सिंह-सदृश, पुरुषवरपुंडरीक-मनुष्यों के बीच रहते हुए कमल की तरह निर्लेप, पुरुषवरगन्धहस्ती-पुरुषों में उत्तम गन्धहस्ती के समान (जिस प्रकार गन्धहस्ती के पहुंचते ही सामान्य हाथी भाग जाते हैं, उसी प्रकार किसी क्षेत्र में
में जिनके प्रवेश करते ही दुर्भिक्ष, महामारी आदि अनिष्ट दूर हो जाते थे), अभयदायक-सभी * प्राणियों के लिए अभयदान देने वाले, चक्षुप्रदायक-आन्तरिक नेत्र रूप सद्ज्ञान देने वाले,
मार्गप्रदायक-सम्यक् ज्ञान, दर्शन, चारित्र रूप साधनामार्ग के उद्बोधक, शरणप्रद-जिज्ञासु
*
औपपातिकसूत्र
(28)
Aupapatik Sutra
*
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org