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________________ १४. तस्स णं पुरिसस्स बहवे अण्णे पुरिसा दिण्णभतिभत्तवेयणा भगवओ पवित्तिवाउया, भगवओ तद्देवसियं पवित्तिं णिवेदेंति । १४. उसने अपने सहायक के रूप में अन्य अनेक व्यक्तियों को भोजन तथा वेतन पर नियुक्त कर रखा था, वे भगवान की प्रतिदिन की प्रवृत्तियों के सम्बन्ध में उसे यथायोग्य सूचना देते रहते थे। 14. This reporter, in turn, had put in place a network of assistants appointed on wages and allowances. This network provided him up-to-date information about Bhagavan Mahavir's daily activities. १५. तेणं कालेणं तेणं समएणं कोणिए राया भंभसारपुत्ते बाहिरियाए उवाणसालाए अणेग - गणणायग- दंडणायग - राईसर - तलवर - माडंबिय - कोडुंबिय - मंति- महामंति- गणग - दोवारिय - अमच्च - चेड - पीढमद्द - नगरनिगम - सेट्ठि - सेणावइसत्थवाह - दूय - संधिवाल - सद्धिं संपरिवुडे विहरइ | १५. एक समय की बात है, भंभसार पुत्र कोणिक बाहरी उपस्थानशाला - ( राजसभा) में बैठा था। उसके पास अनेक गणनायक - विशिष्ट जनसमूहों के नेता, दण्डनायक - उच्च आरक्षि-अधिकारी, राजा - मांडलिक (मंडलाधिकारी ) नरपति, ईश्वर - ऐश्वर्यशाली एवं प्रभावशाली - श्री- पुरुष, तलवर - राज्य - सम्मानित विशिष्ट नागरिक, माडंबिक- जागीरदार, भूस्वामी, कौटुम्बिक -बड़े परिवारों के प्रमुख, मंत्री, महामन्त्री - मन्त्रिमण्डल के प्रधान, गणक - ज्योतिषी, द्वारपाल, अमात्य - राज्य कार्यों में परामर्शक (अठारह श्रेणियों के प्रमुख ), चेड - सेवक, पीठमर्द - परिपार्श्विक - हर समय राजा के साथ रहने वाले अंगरक्षक, नागरिक, व्यापारी, श्रेष्ठी - लक्ष्मी के चिह्न से अंकित स्वर्णपट्ट से जिनका मस्तक सुशोभित रहता था वे श्रेष्ठी कहे जाते थे । सेनापति - रथ, हाथी, घोड़े तथा पैदल चतुरंगिणी - सेना के अधिनायक, सार्थवाह - दूसरे देशों में व्यापार करने वाले व्यवसायी, दूत- दूसरों के तथा राजा के आदेशसन्देश पहुँचाने वाले, सन्धिपाल - राज्य की सीमाओं के रक्षक-सीमारक्षक अथवा शत्रु राजाओं के साथ सन्धि करने में चतुर आदि अनेक विशिष्ट जन बैठे थे । 15. During that period of time king Kunik, the son of Bhambhasar, was holding court in the outer assembly hall. In his attendance were a variety of prominent people including chieftains (gananayag or gananayak); administrators (dandanayag or dandanayak); princes and kings (raisar or rajeshvar / yuvaraj); समवसरण अधिकार Jain Education International (27) For Private & Personal Use Only Samavasaran Adhikar www.jainelibrary.org
SR No.002910
Book TitleAgam 12 Upang 01 Aupapatik Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni, Shreechand Surana
PublisherPadma Prakashan
Publication Year2003
Total Pages440
LanguageHindi, English
ClassificationBook_Devnagari, Book_English, Agam, Canon, Conduct, & agam_aupapatik
File Size16 MB
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