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________________ with a blue hue (like the neck of a peacock), green with a green hue (like the tail of a parrot). (Due to the excess of creepers, plants and trees) the wind blowing through it was cool and soothing. The soil had a nice appearance and it was smooth, slick and not dry. The branches of the dense trees were so closely intertwined that they cast a deep shadow. The whole area looked as attractive as low, expansive and dense clouds. वृक्षावली - वर्णन ४. (क) ते णं पायवा १ . मूलमंतो, २. कंदमंतो, ३. खंधमंतो, ४. तयामंतो, ५. सालमंतो, ६. पवालमंतो, ७. पत्तमंतो, ८. पुप्फमंतो, ९. फलमंतो, १०. बीयमंतो, अणुपुव्वसुजाय - रुइल - वट्टभावपरिणया । एक्कखंधा, अणेगसाला, अणेगसाह-प्पसाहविडिमा, अणेगनर - वामसुप्पसारिय - अग्गेज्झ घण - विउल - बद्धखंधा, अच्छिद्दपत्ता, अविरलपत्ता, अवाईणपत्ता, अणईपत्ता, निद्धूयजरढ - पंडुपत्ता, णव हरिय-भिसंतपत्तभारंधयार - गंभीर - दरिसणिज्जा । उवणिग्गय - णवतरुण - पत्त - पल्लव – कोमल - उज्जल - चलंत - किसलय - सुकुमाल - पवाल - सोहियवरंकुरग्गसिहरा । ४. (क) उस वनखण्ड के वृक्षों की जड़ें (मूल) जमीन में गहरी फैली हुई थीं । उनके कन्द - (मूल के भीतर गाँठें, जहाँ से जड़ें फूटती हैं) और स्कन्ध - ( जहाँ से शाखाएँ फूटती हैं बहुत सुदृढ़ थे । वे वृक्ष छाल, छोटी शाखाएँ, प्रवाल- नई कोंपलें तथा पत्र-पुष्पयुक्त थे । बीज से भरे फल उन पर लगे थे। ये सभी वृक्ष नीचे से ऊपर छत्राकार (गोल आकार) में विकसित थे। इनके स्कन्ध एक थे, उनसे अनेक शाखाएँ फूटी थीं जो ऊपर की ओर निकली हुई थीं। वृक्षों के तने इतने घने सुघड़ तथा विस्तृत थे जो मनुष्यों की फैली हुई भुजाओं की पकड़ में नहीं आ सकते थे । पत्ते छेदरहित, घने और एक-दूसरे से मिले हुए बहुत सघन थे । दीखने में स्वस्थ और नीचे लटके हुए थे । पुराने पत्ते पीले होकर झड़ चुके थे। उनके स्थान पर नये हरे चमकीले पत्ते आ चुके थे जिनकी सघनता से वहाँ सदा ही अँधेरा जैसा छाया रहता था । उन वृक्षों के जो नये पत्ते निकले थे, वे कोमल तथा पूर्ण विकसित थे। उनकी कोंपलें कोमल, उज्ज्वल थीं, उनका वर्ण ताँबे जैसा चमकदार था। इस प्रकार पत्तों, पल्लवों, कोंपलों आदि से वृक्षों के ऊपर के शिखर शोभायमान लगते थे। औपपातिकसूत्र Jain Education International (14) For Private & Personal Use Only Aupapatik Sutra www.jainelibrary.org
SR No.002910
Book TitleAgam 12 Upang 01 Aupapatik Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni, Shreechand Surana
PublisherPadma Prakashan
Publication Year2003
Total Pages440
LanguageHindi, English
ClassificationBook_Devnagari, Book_English, Agam, Canon, Conduct, & agam_aupapatik
File Size16 MB
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