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११४. से णं भविस्सइ अणगारे भगवंते ईरियासमिए जाव गुत्तबंभचारी |
११४. वे अनगार भगवान - दृढ़प्रतिज्ञ मुनि ईर्यासमिति आदि समिति - गुप्ति से युक्त, गुप्त ब्रह्मचारी - सम्पूर्ण नियमोपनियमपूर्वक (नवबाड़ सहित) ब्रह्मचर्य का परिपालन करने वाले होंगे।
114. That anagar Bhagavan Dridhapratijna will become an ascetic strictly observing all the ascetic code from Irya samiti (care of movement) to gupta brahmachari (absolute celibacy).
११५. तस्स णं भगवंतस्स एएणं विहारेणं विहरमाणस्स अणंते, अणुत्तरे, णिव्वाघाए, निरावरणे, कसिणे, पडिपुण्णे केवलवरणाणदंसणे समुप्पज्जहिति ।
११५. इस प्रकार की चर्या में विहरमान - ऐसा साधनामय जीवन जीते हुए दृढ़प्रतिज्ञ मुनि को क्रमशः अनन्त - अनन्त पदार्थों को जानने वाला, अनुत्तर - सर्वश्रेष्ठ, निर्व्याघातबाधा या व्यवधान रहित, आवरणरहित, समग्र - सर्वार्थग्राहक, प्रतिपूर्ण परिपूर्ण, केवलज्ञान, केवलदर्शन उत्पन्न होगा ।
115. Leading such ascetic life of spiritual pursuits ascetic Dridhapratijna will, in due course, attain infinite, unmatched, unrestricted, unveiled, perfect and supreme omniscience (kevaljnana and keval-darshan).
११६. तए णं से दढपइण्णे केवली बहूई वासाइं केवलिपरियागं पाउणिहिति, केवलिपरियागं पाउणित्ता मासियाए संलेहणाए अप्पाणं झूसित्ता, सट्ठि भत्ताई अणसणाए छेदित्ता जस्साए कीरइ नग्गभावे, मुंडभावे, अण्हाणए, अदंतवणए, केसलोए, बंभचेरवासे, अच्छत्तग अणोवाहणगं, भूमिसेज्जा, फलगसेज्जा, कट्ठसेज्जा, परघरपवेसो लद्धावलद्धं, परेहिं हीलणाओ, खिंसणाओ, निंदणाओ, गरहणाओ, तालणाओ, तज्जणाओ, परिभवणाओ, पव्वहणाओ, उच्चावया गामकटंगा, बावीसं परीसहोवसग्गा अहियासिज्जंति, तमट्ठमाराहित्ता चरिमेहिं उस्सासणिस्सासेहिं सिज्झिहिति, बुज्झिहिति, मुच्चिहिति परिणिव्याहिति, सव्यदुक्खाणमंतं करेहिति ।
१ १ ६ . तत्पश्चात् दृढ़प्रतिज्ञ केवली बहुत वर्षों तक केवलि-पर्याय का पालन करेंगे अर्थात् केवलि अवस्था में विचरेंगे । केवलि - पर्याय का पालन करते हुए, एक मास की संलेखना और साठ भक्त (प्रतिदिन दो समय का भोजन मानने के अनुसार साठ भोजन काल अर्थात्) एक
अम्बड़ परिव्राजक प्रकरण
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Story of Ambad Parivrajak
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