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* मास का अनशन सम्पन्न कर जिस उद्देश्य के लिए नग्नभाव (शरीर के प्रति अनासक्त भाव), * मुण्डभाव-सांसारिक सम्बन्धों व कषायों का त्याग, अस्नान (स्नान का परित्याग), अदन्तवन
(दतौन आदि का त्याग), केशलुंचन, ब्रह्मचर्यवास, अच्छत्रक-छाता धारण नहीं करना, जूते या पादरक्षिका धारण नहीं करना, भूमि पर सोना, फलक-काष्टपट्ट पर सोना, भिक्षा हेतु परगृह में प्रवेश करना, समय पर आहार की प्राप्ति हो या न हो फिर भी समभाव रखना, दूसरों द्वारा की गई भर्त्सनापूर्ण अवहेलना-अवज्ञा या तिरस्कार, खिंसना-मर्मोद्घाटनपूर्वक अपमान सहना, निन्दना-निन्दा, गर्हणा लोगों के समक्ष प्रकट की गई मानसिक घृणा, तर्जना-अंगुली आदि द्वारा संकेत कर कहे गये कटु वचन, ताड़ना-थप्पड़ आदि द्वारा परिताड़न, परिभवनाअपमान, परिव्यथना-व्यथा, आँख, कान, नाक आदि इन्द्रियों के लिए कष्टकर अनुकूलप्रतिकूल स्थितियाँ, बाईस प्रकार के परीषह तथा देवादिकृत उपसर्ग आदि स्वीकार किये हैं, उस आत्म-कल्याण रूप चरम लक्ष्य को प्राप्त करके अपने अन्तिम उच्छ्वास-निःश्वास (अन्तिम साँस) में सिद्ध होंगे, बुद्ध होंगे, मुक्त होंगे, परिनिवृत्त होंगे, सब दुःखों का अन्त करेंगे। .. 116. After that, Dridhapratijna Kevali will live and move about as an omniscient for many years. At the last moment, on achieving the ultimate goal of spiritual beatitude for which, while living as an omniscient, he underwent and endured various hardships—such as remaining unclad (nagnabhaava or detached from body); tonsured (mundabhaava or renouncing mundane relations and passions); giving up bathing (asnana); not cleaning teeth (adantavan); pulling out hair (kesh lunchan); practicing celibacy (brahmacharyavaas); giving up use of umbrella and sandals (achhatrak and the anopahanagam); lying on ground (bhumishayan); lying on wooden or plank (phalak shayan and kashta shayan); visiting houses of other people to seek alms; remaining equanimous irrespective of getting * alms or not; ignoring rude neglect by others; tolerating scathing to tak insult, slandering, hatred of people, rebuke, beating, affront, pain, and conditions unfavourable for sense organs including eyes, ears and nose; and twenty two kinds of physical afflictions and divine afflictions—he will observe the ultimate vow with month long fasting and become perfect (Siddha), enlightened (buddha), liberated (mukta), free of cyclic rebirth (parinivrit) and thus shall end all miseries.
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औपपातिकसूत्र
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Aupapatik Sutra
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