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________________ अम्बड़ परिव्राजक के सात सौ अन्तेवासी ८२. तेणं कालेणं तेणं समएणं अम्मडस्स परिव्वायगस्स सत्त अंतेवासिसयाई गिम्हकालसमयंसि जेट्ठामूलमासंमि गंगाए महानईए उभओकूलेणं कंपिल्लपुराओ यराओ पुरिमतालं यरं संपट्टिया विहाराए । अम्बड़ परिवाजक प्रकरण STORY OF AMBAD PARIVRAJAK ८२. उस काल उस समय जब भगवान महावीर इस क्षेत्र में विचर रहे थे, तब एक बार जब ग्रीष्म ऋतु का समय था, जेठ का महीना था, अम्बड़ परिव्राजक के सात सौ अन्तेवासी शिष्य गंगा महानदी के दो किनारों से काम्पिल्यपुर नामक नगर से पुरिमताल नामक नगर को रवाना हुए। SEVEN HUNDRED DISCIPLES OF AMBAD PARIVRAJAK 82. During that period of time when Bhagavan Mahavir was wandering in this area, once during the Jyeshtha month of the summer season Ambad Parivrajak with his seven hundred disciples left Kampilyapur city on the two banks of the Ganges for Purimtaal city. विवेचन - प्रस्तुत सूत्र में अम्बड़ परिव्राजक का वर्णन है । आगमों में अम्बड़ परिव्राजक नामक व्यक्ति की तीन स्थानों पर चर्चा है । भगवतीसूत्र ( शतक १४, उ. ८) में अम्बड़ परिव्राजक के सम्बन्ध में बहुत ही संक्षिप्त उल्लेख है। स्थानांगसूत्र ( स्था. ९) अम्बड़ परिव्राजक नामक एक व्यक्ति का वर्णन आता है। । वह एक विद्यासिद्ध पुरुष है। उसने चम्पा नगरी में भगवान महावीर का धर्मोपदेश ग्रहण किया। जब चम्पा नगरी से राजगृह की ओर जाने लगा तब भगवान ने कहा - "वहाँ सुलसा नामक श्रमणोपासिका रहती है, उसे कुशल समाचार कहना।" अम्बड़ सोचने लगा- 'वह कौन महान् पुण्यशालिनी महिला है, जिसे स्वयं भगवान ने अपना कुशल समाचार कहने को कहा है? उसमें ऐसी क्या विशेषता है ?' तब सुलसा के सम्यक्त्व की परीक्षा लेने अम्बड़ सुलसा श्रमणोपासिका के पास पहुँचता है। अपने चमत्कारों व आडम्बरों से जहाँ राजगृह के हजारों लोगों को प्रभावित किया, वहाँ सुलसा को भी व्यामोहित करने की बहुत चेष्टा की, किन्तु सुलसा उसके आडम्बरों से कतई प्रभावित नहीं हुई। उसकी सम्यक्त्व दृढ़ता देखकर अम्बड़ परिव्राजक स्वयं ही सुलसा के प्रति विनत हो गया और उसकी दृढ़ सम्यक्त्व की प्रशंसा की। उससे प्रतिबोध प्राप्त किया । यह अम्बड़ परिव्राजक आगामी चौबीसी में तीर्थंकर होगा। औपपातिकसूत्र में जिस अम्बड़ परिव्राजक का वर्णन है वह स्थानांग के अम्बड़ परिव्राजक से भिन्न व्यक्ति लगता है। यह अम्बड़ परिव्राजक वैदिक एवं निर्ग्रन्थ-दोनों आचार परम्परा का एक मिश्रित अम्बड़ परिव्राजक प्रकरण Jain Education International (249) For Private & Personal Use Only Story of Ambad Parivrajak www.jainelibrary.org
SR No.002910
Book TitleAgam 12 Upang 01 Aupapatik Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni, Shreechand Surana
PublisherPadma Prakashan
Publication Year2003
Total Pages440
LanguageHindi, English
ClassificationBook_Devnagari, Book_English, Agam, Canon, Conduct, & agam_aupapatik
File Size16 MB
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