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PARADISPRASPASCRISPRISINSPINSINGINEPONSINGPOREPOREPREPX6°/6°BIG BIGBAGPAGDIGANGPOR6°/6°/6°/6°/6°oke
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____धमं णं आइक्खमाणा तुब्भे उवसमं आइक्खह, उवसमं आइक्खमाणा विवेगं
आइक्खह, विवेगं आइक्खमाणा वेरमणं आइक्खह, वेरमणं आइक्खमाणा अकरणं पावाणं कम्माणं आइक्खह, णत्थि णं अण्णे केइ समणे वा माहणे वा, जे एरिसं
धम्ममाइक्खित्तए, किमंग पुण एत्तो उत्तरतरं ?" एवं वंदित्ता जामेव दिसं पाउन्भूया, * तामेव दिसं पडिगया।
५९. इसके पश्चात् शेष परिषद् ने श्रमण भगवान महावीर को वन्दन किया, नमस्कार किया, वंदन-नमस्कार करने के बाद हाथ जोड़कर कहा-“भगवन् ! आपने निर्ग्रन्थ प्रवचन बहुत सुन्दर रूप में कहा, सुप्रज्ञप्त-उत्तम रीति से तत्त्व को समझाया, सुभाषित-हृदयस्पर्शी भाषा में उसका प्रतिपादन किया, सुविनीत-शिष्यों ने अन्तेवासियों ने सहज रूप में अंगीकृत किया, सुभावित-प्रशस्त भावों पूर्वक हृदयंगम किया। यह निर्ग्रन्थ प्रवचन, अनुत्तरसर्वश्रेष्ठ है।
आपने धर्म की व्याख्या करते हुए उपशम-क्रोध आदि को जीतने का उपाय समझाया। उपशम की व्याख्या करते हुए विवेक-हेय और उपादेय तत्त्वों का विवेचन किया। विवेक
की व्याख्या करते हुए आपने विरमण-प्राणातिपातादि से निवृत्ति का निरूपण किया। विरमण a की व्याख्या करते हुए आपने पापकर्म न करने का उपदेश दिया। इस काल में दूसरा कोई
श्रमण या ब्राह्मण नहीं है, जो इस प्रकार के धर्म का उपदेश कर सके। इससे श्रेष्ठ धर्म के उपदेश की तो बात ही कहाँ ?' यों अहोभाव प्रकट कर वह परिषद् जिस दिशा से आई थी, उसी ओर वापस चली गई।
EXPRESSION OF GRATITUDE 9 59. Then the rest of the congregation paid homage and obeisance 9 to Shraman Bhagavan Mahavir and submitted with joint palms
“Bhagavan ! You have expressed the Nirgranth tenets very
eloquently. You have explained the fundamentals in an excellent a manner and conveyed those in an enchanting language. Your
ascetic disciples have understood and absorbed it with noble feelings. This sermon of the Nirgranth is unique, indeed.
“While defining dharma you have explained the methods of disciplining (upasham) anger and other passions. During elaboration of upasham (discipline, containment, suppression of passions) you have explained discerning attitude (vivek) for
me
समवसरण अधिकार
(205)
Samavasaran Adhikar
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