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* (shramanopasak / shravak and shramanopasikal shravika) of the or
word of the detached Arihants. (The detailed description of a householder's code is available in Illustrated Upasak Dasha Sutra,
Ch. 1) * परिषद् का वापस गमन
५८. तए णं सा महतिमहालिया मणूसपरिसा समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतिए * धम्म सोच्चा, णिसम्म हट्टतुट्ठ जाव हियया उट्ठाए उढेइ, उद्वित्ता समणं भगवं महावीरं * तिक्खुत्तो आयाहिणं पयाहिणं करेइ, करेत्ता वंदइ णमंसइ, वंदित्ता णमंसित्ता अत्थेगइया ये * मुंडे भवित्ता अगाराओ अणगारियं पव्वइया, अत्थेगइया पंचाणुबइयं सत्तसिक्खावइयं
दुवालसविहं गिहिधम्मं पडिवण्णा।
५८. तब वह विशाल मनुष्य-परिषद् श्रमण भगवान महावीर से धर्म सुनकर, हृदय में धारण कर, हृष्ट-तुष्ट-अत्यन्त प्रसन्न हुई, चित्त में आनन्द एवं प्रीति का अनुभव करती हुई, हर्षातिरेक से विकसित हृदय होकर उठी। उठकर श्रमण भगवान महावीर को तीन बार आदक्षिण-प्रदक्षिणा, वन्दन-नमस्कार किया, वंदन-नमस्कार कर उनमें से कई विरक्त आत्माओं ने गृहस्थ जीवन का परित्याग कर मुण्डित होकर अनगार या श्रमण के रूप में दीक्षा ग्रहण की। कइयों ने पाँच अणुव्रत तथा सात शिक्षाव्रत रूप बारह प्रकार का गृहिधर्म-श्रावक-धर्म स्वीकार किया। DISPERSING OF THE CONGREGATION
58. Hearing and accepting the sermon of Bhagavan Mahavir * that large congregation got very much pleased and delighted. * Experiencing joy and devotion and exhilarated with effusion of bliss
everyone got up. After that they went around Shraman Bhagavan Mahavir three times clockwise and paid homage and obeisance.
Then some of the detached souls among them renounced * householder's life, tonsured their heads and got initiated as
homeless ascetics. Many of them accepted the twelve fold shravak
code inclusive of five minor vows and seven complementary vows. * अहोभाव की अभिव्यक्ति
५९. अवसेसा णं परिसा समणं भगवं महावीरं वंदइ णमंसइ, वंदित्ता णमंसित्ता एवं वयासी-“सुअक्खाए ते भंते ! निग्गंथे पावयणे एवं सुपण्णत्ते, सुभासिए, सुविणीए, सुभाविए, अणुत्तरे ते भंते ! निग्गंथे पावयणे।
BAROBARODARODAS Karist
9805902RODH Pok
XMME
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औपपातिकसूत्र
(204)
Aupapatik Sutra
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