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सव्वं अस्थिभावं अत्थित्ति वयइ, सव्वं णत्थिभावं णत्थित्ति वयइ, सुचिण्णा कम्मा सुचिण्णफला भवंति, दुचिण्णा कम्मा दुचिण्णफला भवंति, फुसइ पुण्णपावे, पच्चायंति जीवा, सफले कल्लाणपावए ।
धम्ममाइक्खइ–इणमेव णिग्गंथे पावयणे सच्चे, अणुत्तरे, केवलिए, संसुद्धे, पडिपुण्णे, णेयाउए, सल्लकत्तणे, सिद्धिमग्गे, मुत्तिमग्गे, णिव्वाणमग्गे, णिज्जाणमग्गे, अवितहमविसंधि, सव्वदुक्खप्पहीणमग्गे । इहट्टिया जीवा सिज्झंति, बुज्झंति, मुच्चंति, परिणिव्वायंति, सव्यदुक्खाणमंतं करेंति ।
(ख) भगवान ने जो धर्मदेशना दी, वह इस प्रकार है - लोक का अस्तित्त्व है, अलोक का अस्तित्त्व है, इसी प्रकार जीव, अजीव, बन्ध, मोक्ष, पुण्य, पाप, आस्रव, संवर, वेदना, निर्जरा, अर्हत्, चक्रवर्ती, बलदेव, वासुदेव, नरक, नैरयिक, तिर्यंचयोनि, तिर्यंचयोनिक जीव, माता, पिता, ऋषि (अतीन्द्रिय ज्ञानी), देव, देवलोक, सिद्धि, सिद्ध, परिनिर्वाण - मोक्ष तथा परिनिवृत्त - मुक्त आत्मा; इनका अस्तित्त्व है।
(१) प्राणातिपात - हिंसा, (२) मृषावाद - असत्य, (३) अदत्तादान - चोरी, (४) मैथुन, और (५) परिग्रह हैं । (६) क्रोध, (७) मान, (८) माया, (९) लोभ, यावत् [ (१०) प्रेममाया व लोभजनित आसक्ति राग भाव, (११) द्वेष - अव्यक्त मान व क्रोधजनित अप्रीति रूप भाव, (१२) कलह, (१३) अभ्याख्यान - मिथ्यादोषारोपण, (१४) पैशुन्य - चुगली, (१५) परपरिवाद - निन्दा, (१६) रति - असंयम में सुख मानना, अरति संयम में अरुचि रखना, ( रति- अरति दोनों ही मोहनीय कर्म के उदय से होती है), (१७) मायामृषाछलपूर्वक झूठ बोलना ], (१८) मिथ्यादर्शन शल्य ( मिथ्यात्व रूप काँटा है) ।
(१) प्राणातिपातविरमण - हिंसा से विरत होना, (२) मृषावादविरमण - असत्य से विरत . होना, (३) अदत्तादानविरमण - चोरी से निवृत्त होना, (४) मैथुनविरमण - मैथुन से विरत होना, (५) परिग्रहविरमण - परिग्रह से विरत होना, यावत् [ ( ६ ) क्रोध से विरत होना, (७) मान से विरत होना, (८) माया से विरत होना, (९) लोभ से विरत होना, (१०) प्रेम से विरत होना, (११) द्वेष से विरत होना, (१२) कलह से विरत होना, (१३) अभ्याख्यान से विरत होना, (१४) पैशुन्य से विरत होना, (१५) पर- परिवाद से विरत होना, (१६) अरति - रति से विरत होना, (१७) मायामृषा से विरत होना ] यावत् (१८) मिथ्यादर्शनशल्यविवेक - मिथ्या विश्वास को त्यागना यह सब है ।
उपर्युक्त सभी पदार्थ अस्तिभावयुक्त हैं, अर्थात् अपने-अपने द्रव्य, क्षेत्र, काल एवं भाव की अपेक्षा से अस्तित्त्वयुक्त हैं किन्तु वे भी सभी नास्तिभाव - पर द्रव्य, क्षेत्र, काल, भाव
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Samavasaran Adhikar
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