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* की अपेक्षा से नहीं हैं-ऐसा कहा जाता है। सुचीर्ण-प्रशस्त भावों से आचरित दान, शील, * तप आदि कर्म उत्तम फल देने वाले हैं तथा दुश्चीर्ण-अप्रशस्त भावों से आचरित कर्म
अशुभ फल देने वाले हैं। जीव (अपने शुभ-अशुभ भावों के अनुसार) पुण्य तथा पाप का
बन्ध करता है। जीव उत्पन्न होते हैं-संसारी जीवों का जन्म-मरण होता है। कल्याण-शुभ * कर्म, पाप-अशुभ कर्म फलयुक्त हैं, कर्म निष्फल नहीं होते।
पुनः भगवान धर्म का आख्यान/प्रतिपादन करते हैं यह निर्ग्रन्थ प्रवचन (प्राणी की * अन्तर्वर्ती ग्रन्थियों को छुड़ाने वाला उपदेश) सत्य है, अनुत्तर-सर्वोत्तम है, केवली-सर्वज्ञ * द्वारा भाषित है, अतः केवल-अद्वितीय है। संशुद्ध-सर्वथा निर्दोष है, प्रतिपूर्ण-प्रवचन गुणों * से सर्वथा परिपूर्ण है, नैयायिक-न्यायसंगत है तथा शल्यकर्तन-माया आदि शल्यों-काँटों का * निवारण करने वाला है, यह सिद्धि या सिद्धावस्था प्राप्त करने का मार्ग है, मुक्ति-कर्मरहित " अवस्था या निर्लोभता का मार्ग है, निर्वाण-सकल संतापरहित अवस्था प्राप्त कराने का पथ । " है, निर्याण-पुनः नहीं लौटाने वाला-(जहाँ जाकर पुनः लौटना नहीं पड़े वही मुक्ति का मार्ग) " है, अवितथ-वास्तविक, अविसन्धि-पूर्वापर विरोध से रहित है, तथा सब दुःखों को प्रहीण
सर्वथा क्षीण करने का मार्ग है। इसकी आराधना करने वाले जीव सिद्धि-सिद्धावस्था प्राप्त * करते हैं अथवा अणिमा आदि महती सिद्धियों को प्राप्त करते हैं। बुद्धज्ञानी-केवलज्ञानी होते है। " हैं, मुक्त-जन्म-मरण में लाने वाले कर्मों से रहित हो जाते हैं, परिनिर्वृत्त होते हैं-कर्मकृत
संताप से रहित-परम शान्तिमय हो जाते हैं तथा सभी दुःखों का अन्त कर देते हैं। THE UNIVERSAL FORM OF BHAGAVAN'S SERMON
(b) The religious sermon given by Bhagavan is like this—The lok (occupied space or universe) exists. The alok (unoccupied space or * the space beyond the known universe) exists. In the same way jiva * (the living or soul), ajiva (the non-living or matter), bandh (bondage
of karmas), moksha (state of liberation), punya (meritorious karmas), paap (demeritorious karmas or sins), asrava (inflow of karmas), samvar (stoppage of inflow of karmas), vedana (suffering),
nirjara (shedding of karmas), arhat (worthy of worship), * Chakravarti, Baldev, Vasudev (these three are epoch maker * sovereigns of the land. For more details refer to appendix-12, * Illustrated Tirthankar Charitra), narak (hell), nairayik (infernal
beings), tiryanch-yoni (animal genus), tiryanch-yonik jiva (animals), maataa (mother), pitaa (father), rishi (sages with supernatural
powers), dev (divine beings), dev-lok (divine dimension or heaven), * औपपातिकसूत्र
Aupapatik Sutra
p uroparoptioDEOMARITALIAOMIORMOIndrenimariN
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