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________________ ५१. तब भंभसार पुत्र राजा कूणिक के आगे विशालकाय घोड़े और घुड़सवार चल रहे थे। दोनों ओर हाथी तथा हाथियों पर सवार पुरुष थे उनके पीछे रथों का झुण्ड चल रहा था । 51. At that time the escort group of king Kunik comprised of riders on tall horses in front, riders on elephants on flanks and chariots covering the rear. ५२. तए णं से कूणिए राया भंभसारपुत्ते अब्भुग्गयभिंगारे, पग्गहियतालयंटे, ऊसविय - सेयच्छत्ते, पवीइयबालवीयणीए, सव्विड्डीए, सव्यजुईए सव्वबलेणं, सब्वसमुदएणं, सव्वादरेणं, सव्वविभूईए, सव्वविभूसाए, सव्वसंभमेणं, सव्यपुष्पगंधमल्लालंकारेणं, सव्वतुडियसद्दसण्णिणाएणं, महया इड्डीए, महया जुईए, महया बलेणं, महया समुदणं, महया वरतुडिय - जमग- समगप्पवाइएणं संख - पणव- पडह - भेरिझल्लरि - खरमुहि - हुडुक्क - मुरव - मुअंग - दुंदुहि - णिग्घोसणाइयरवेणं चंपाए णयरीए मज्झंमज्झेणं णिग्गच्छइ । ५२. इस विशाल जुलूस के साथ भंभसार पुत्र राजा कूणिक चम्पा नगरी के बीचोंबीच होता हुआ आगे बढ़ा। उसके आगे-आगे जल से भरी झारियाँ लिए पुरुष चल रहे थे । सेवक दोनों ओर पंखे झल रहे थे। ऊपर सफेद छत्र तना था । चँवर ढोले जा रहे थे। वह सब प्रकार की समृद्धि, सब प्रकार की द्युति, सब प्रकार के सैन्य बल एवं सभी परिजनों के साथ चल रहा था। सभी उसके प्रति आदर प्रकट कर रहे थे। वह सब प्रकार के वैभव, सब प्रकार की वेशभूषा - - वस्त्र, आभरण आदि द्वारा सुसज्ज, सबकी स्नेहपूर्ण उत्सुकता लिए सब प्रकार के फूल, सुगन्धित पदार्थ, फूलों की मालाएँ, अलंकार या फूलों की मालाओं से निर्मित आभरण धारण किये हुए था। उसके सन्मुख, सर्व तूर्यशब्द - सन्निपात - सब प्रकार के वाद्यों की ध्वनि - प्रतिध्वनि, महाऋद्धि - अपने विशिष्ट वैभव, महाद्युति - विशिष्ट आभा, महाबलविशिष्ट सेना, महासमुदय - अपने विशिष्ट पारिवारिक जन-समुदाय से सुशोभित था । शंख, पणव - ढोल, पटह-बड़े ढोल, भेरी, झालर, खरमुही, हुडुक्क, मुरज-ढोलक, मृदंग तथा दुन्दुभि-नगाड़े एक साथ विशेष रूप से बजाए जा रहे थे। 52. With this large procession king Kunik, the son of Bhambhasar moved through the heart of the city of Champa. In front of him walked men carrying jars filled with water. On both sides were attendants waving fans. There was a white canopy above औपपातिकसूत्र Aupapatik Sutra Jain Education International (178) For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002910
Book TitleAgam 12 Upang 01 Aupapatik Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni, Shreechand Surana
PublisherPadma Prakashan
Publication Year2003
Total Pages440
LanguageHindi, English
ClassificationBook_Devnagari, Book_English, Agam, Canon, Conduct, & agam_aupapatik
File Size16 MB
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