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रथ सेना
तयाणंतरं च णं सच्छत्ताणं सज्झयाणं सघंटाणं सपडागाणं सतोरणवराणं सणंदिघोसाणं-सखिंखिणीजालपरिक्खित्ताणं हेमवयचित्ततिणिसकणगणिज्जुत्तदारुयाणं, कालायससुकयणेमिजंतकम्माणं, सुसिलिट्ठ - वत्तमंडलधुराणं, आइण्णवरतुरसंपउत्ताणं, कुसलनरच्छेयसारहिसुसंपग्गहियाणं बत्तीसतोणपरिमंडियाणं सकंकडवडेंसगाणं सचावसरपहरणावरण- भरियजुद्धसज्जाणं अट्ठसयं रहाणं पुरओ अहाणुपुवीए संप्पद्वियं ।
पदाति सेना
तयाणंतरं च णं असि - सत्ति - कुंत - तोमर - सूल-लउड - भिंडिमाल - धणुपाणि - सज्जं पायत्ताणीयं पुरओ अहाणुपुब्बीए संपट्ठियं ।
४९. राजा कूणिक अपने प्रधान हाथी पर सवार हुआ, तब सबसे पहले आगे स्वस्तिक, श्रीवत्स, नन्द्यावर्त, वर्द्धमानक, भद्रासन, कलश, मत्स्य तथा दर्पण - ये आठ मंगल प्रतीक क्रमशः रवाना किये गये ।
उसके बाद जल से भरे हुए कलश, झारियाँ, दिव्य छत्र, पताका, चँवर तथा राजा को दिखाई देने वाली, देखने में सुन्दर प्रतीत होने वाली, हवा से फहराती, ऊँची उठी हुई मानो आकाश को छूती हुई-सी विजय - वैजयन्ती - विजयध्वजा लिए राजपुरुष चले ।
कितनेक पुरुष वैदूर्यमणि की प्रभा से देदीप्यमान उज्ज्वल दंडयुक्त, लटकती हुई कोरंट पुष्पों की मालाओं से सुशोभित, चन्द्रमंडल के समान आभामय-ऊँचा उठा हुआ निर्मल छत्र आतपत्र लेकर चले। कुछ लोग पादपीठ-राजा के पैर रखने का पीढ़ायुक्त उत्तम सिंहासन, जिसमें श्रेष्ठ मणियाँ तथा रत्न जड़े थे, जिस पर राजा की पादुकाओं की जोड़ी रखी थीं, वह लेकर चले, उनके साथ आज्ञा - पालन में तत्पर सेवक, (किंकर) - विभिन्न कार्यों में नियुक्त भृत्य तथा पदातिय - पैदल चलने वाले लोग थे, वे राजा के आगे-आगे चलने लगे । इसके पीछे बहुत से लष्टिग्राह - लट्ठीधारी, कुन्तग्राह - भालाधारी, चापग्राह - 8 ह - धनुर्धारी, चमरग्राह- चँवर लिए हुए, पाशग्राह- हाथी, घोड़ों, बैलों को नियन्त्रित करने हेतु अंकुश - चाबुक आदि हाथ में लिए हुए, पुस्तकग्राह - पुस्तकधारी-ग्रन्थ लिए हुए, फलकग्राह- काष्ठपट्ट लिए हुए, पीठग्राह-आसन लिए हुए, वीणाग्राह - वीणा धारण किये हुए, कूप्यग्राह - चमड़े के तेलपात्र लिए हुए, हडप्पयग्राह - ताम्बूल - पान के मसाले, सुपारी आदि के पात्र लिए हुए अनेक पुरुष अनुक्रम से चलने लगे ।
औपपातिकसूत्र
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Aupapatik Sutra
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