________________
३०. (ठ) स्वाध्याय तप क्या है ?
स्वाध्याय तप पाँच प्रकार का है। वह इस प्रकार है - ( 9 ) वांचना - आचार्य आदि से विधिपूर्वक सूत्रादि का यथाविधि यथासमय शास्त्र का अध्ययन करना, (२) प्रतिपृच्छना - अधीत विषय में विशेष स्पष्टीकरण हेतु पूछना, (३) परिवर्तना - अधीत ज्ञान की पुनरावृत्ति करना, सीखे हुए को बार-बार दुहराना, (४) अनुप्रेक्षा - सूत्र, अर्थ व आगमानुसारी विषय का पुनः - पुनः चिन्तन-मनन करना, (५) धर्मकथा - श्रुतधर्म की व्याख्या - विवेचना व उपदेश करना । यह स्वाध्याय तप का स्वरूप है।
(4) SVADHYAYA TAP
30. (1) What is this Svadhyaya tap ?
Svadhyaya tap (study and teaching of holy scriptures) is of five types (a) Vachana-To take lessons of the scriptures methodically from the Acharya at proper time following proper procedure, (b) Pratiprichhana-To resolve difficulties and doubts and to seek clarification and elaboration by asking questions, (c) Parivartana-To revise and repeat what has already been learnt, (d) Anupreksha-To ruminate over anything connected with the scriptures including the text, meaning and related topics, (e) Dharmakatha - To comment, elaborate and lecture on Shrut Dharma (the religion propagated by Jinas). This concludes the description of Svadhyaya tap.
(५) ध्यान तप
३०. (ड) से किं तं झाणे ?
झाणे चउव्विहे पण्णत्ते । तं जहा - १. अट्टज्झाणे, २. रुद्दज्झाणे, ३. धम्मज्झाणे, ४. सुक्कज्झाणे ।
(i) आर्तध्यान- अट्टज्झाणे चउव्विहे पण्णत्ते । तं जहा - १. अमणुण्णसंपओगसंपउत्ते तस्स विप्पओगसतिसमण्णागए यावि भवइ, २. मणुण्णसंपओगसंपत्ते तस्स अविप्पओगसतिसमण्णागए यावि भवइ, ३. आयंकसंपओगसंपत्ते तस्स विप्पओगसतिसमण्णागए यावि भवइ, ४. परिजूसिय- कामभोग - संपओगसंपत्ते तस्स अविप्पओगसतिसमण्णागए यावि भवइ ।
औपपातिकसूत्र
Jain Education International
( 108 )
For Private & Personal Use Only
Aupapatik Sutra
www.jainelibrary.org